panchgavya gurukulam

आज हम स्वदेशी के नाम पर केवल वस्तुओं में सिमट कर रह गए हैं. लेकिन स्वदेशी का बड़ा ही व्यापक अर्थ है. स्व और देशी, यहाँ पर स्व का अर्थ स्वयं से है और देशी का अर्थ समझने के लिए भारतीये संस्कृति के मूल मंत्र “वसुद्धेव कुटुम्बकम” से समझा जा सकता है. अर्थात हम जिस वसुधा (धरती) पर रहते हैं उस धरती पर रहने वाले सभी (जीव जगत और वनस्पति जगत) हमारे कुटुम्ब हैं.

हम जिस वसुधा पर रहते हैं – यह वसुधा हमारा घर है, हमारा गांव है, हमारा पंचायत है, हमारा जिला है, हमारा प्रदेश है, हमारा देश है और अंत में हमारी धरती है. यानि सर्वप्रथम हमारा घर हमारा देश है. घर की चहारदीवारी में उगने वाली वनस्पतियाँ हमारी कुटुम्ब हैं, घर की चहारदीवारी में पलने वाले जीव (जैसे गोमाता, बकरी, कुत्ता, बिल्ली और कई अज्ञात जीव) सभी हमारे कुटुम्ब हैं. इस भाव से ऊपर उठते हुए हमारा गांव हमारी वसुधा है, उसके आगे पंचायत, जिला, प्रदेश, देश और फिर हमारी धरती हमारी वसुधा है. इस वसुधा पर रहने वाले / वाली सभी वनस्पतियाँ और जीव हमारे कुटुम्ब हैं. अत: मनुष्य होने के नाते इन सभी की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है.

यानि स्वदेशी का सर्वप्रथम अर्थ अपने घर से है. यानि केवल अपने घर की बनी हुई वस्तुओं का सेवन करें. अर्थ सीधा सा है की अपने घर का बना भोजन करें. होटलों के खाना स्वदेशी नहीं है. हम उन्ही वस्तुओं का उपयोग करें जो हमारे गांव की है. हमारे गांव की बनी है, उपजी है. कुछ ऐसी वस्तुएं भी हो सकती है जो हमारी जरुरत की है लेकिन हमारे गांव में नहीं बनती – वैसी वस्तु के लिए हम गांव की सीमा से बहार पंचायत फिर जिला, प्रदेश, देश और फिर पूरी दुनिया को स्वदेशी मान सकते हैं.

कुछ उदाहरण से हम इसे समझ सकते हैं. यदि हमारे गांव में चावल की उपज होती है तो वही हमारे लिए स्वदेशी अनाज है. दूसरे गांव वाली नहीं. यदि हमारी जरुरत का कम्पूटर हमारे गांव में नहीं बनती तो देखना होगा की हमारे पंचायत में बनती है क्या ? वहां भी नहीं बनती तो देखना होगा की हमारे जिला में बनती है क्या ? वहां भी नहीं बनती तो देखना होगा की हमारे प्रदेश में बनती है क्या ? वहां भी नहीं बनती है तो देखना होगा की हमारे देश में बनती है क्या ? वहां भी नहीं बनती है तो देखना होगा की हमारे देश के पडोसी देशों में बनती है क्या ? वहां भी नहीं बनती हो तो जहाँ भी बनती हो वहाँ का ही हमारे लिए स्वदेशी है.

यह भाव केवल वस्तुवों में हो ऐसा भी नहीं है – यह भाव भोजन वाले वस्तुओं से लेकर पहनावा, बोली, गृह सभी में हो तो वह स्वदेशी का मूल भाव मानने वाले लोग होंगे. कारन स्पष्ट है की हम जिस वसुधा में रहते हैं उसी वसुधा में उगे अन्न हमारे शरीर के लिए उपयोगी होता है. हमारा शरीर जिस भूगोल की मिट्टी, अग्नि, वायु, जल और आकाश को लेकर बना है उसी भूगोल की मिट्टी में उपजा अनाज, फल, फूल और सब्जी हमारे शरीर के लिए अच्छा है. जिस भूगोल से हमारे शरीर का सम्बन्ध नहीं है उस भूगोल में उपजे अनाज हमारे शरीर के लिए उतने उपयोगी नहीं होते.

इसीलिए “गव्यहाट” इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने विकेन्द्रित उत्पादन के साथ – साथ विकेन्द्रित बाजार की परिकल्पना को आधुनिक मार्केटिंग से जोड़ कर भारत की जनता के लिए उच्चकोटि की वस्तुओं को सहजता के साथ उपलब्ध करने का प्रयाश कर रहा है. “गव्यहाट” यह विशेष ध्यान रखेगा की उपभोगता को उसकी वसुधा में उपजी खाद्य वस्तुएं मिले. उसकी वसुधा में रहने वाली गोमाताओं के गव्य मिले और “गोमाता से निरोगी भारत” का सपना पूरा हो सके.

Panchgavya Vidyapeetham

पंचगव्य विद्यापीठम.
भारतीय पौराणिक तकनीकी ज्ञान को समर्पित गुरुकुलीय विश्वविद्यालय.
हमारा नारा: 1) गोमाता से निरोगी भारत 2) गोमाता से असाध्य नहीं कोई रोग.
हमारा लक्ष्य: भारत के सभी जिलों में पंचगव्य चिकित्सा केंद्र एवं पंचगव्य चिकित्सा शिक्षा की उपलब्धता.
आइये ! साथ मिल कर बढ़ें ! आइये ! राष्ट्र निर्माण के इस यज्ञ में साथ आइये ! पंचगव्य विद्यापीठम एक शैक्षणिक आन्दोलन है, भारतीय चिकित्सा विधा को भारत में फिर से स्थापित करने के लिए. पंचगव्य विद्यापीठम के प्रयास से लुप्त हो गयी "नाडी और नाभि विज्ञान" फिर से पुनर्जीवित हो रही है. गौमाता के गव्यों (गोमय, गोमूत्र, क्षीर, दधी, मक्खन, छाछ, घी, भस्म, गोस्पर्श) से भारत की अर्थव्यवस्थता ऊंची उठेगी – भारत समृद्ध बनेगा। भारत के लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा – भारत में श्रम बढ़ेगा। गव्यों के सेवन से युवा पीढ़ी का मन बदलेगा – राष्ट्रियता कूट-कूट कर भरेगी। भारतीय कृषि नैसर्गिक होगी – देसी बीज बचेगा, उत्पादन बढ़ेगा।

https://panchgavya.org/

1 comment on “यही है स्वदेशी

  1. Namaskar, I am from Muzaffarpur, Bihar
    I wish to know following facts:
    1) the courses offered by your university are approved by government
    2) what is the procedure for opening of your branch at district level
    3) how can I associate with your organization to meet the goals of organization
    4)ideally your organization is very close to me as I believe ideologies of swadeshi

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