क्यों है अच्छा
स्वदेशी अच्छा हैकई बार प्रश्न उठता है की स्वदेशी ही क्यों ? स्वदेशी का अर्थ “वसुधेव कुटुम्बकम” से है. अर्थात अपनी वसुधा के साथ है, ऐसे में अपनी वसुधा को जानना चाहिए. वसुधा को जन कर अपने कुटुम्ब को जानना चाहिए. फिर कुटुम्ब के मिल – जुल कर जीवन यापन करना चाहिए. यही है जीवन में स्वदेशी का सार. आइये ! जानते हैं विस्तार से.
हम गोल पृथ्वी के जिस भूभाग में रहते हैं अर्थात हम जहाँ पर रहते हैं वहां से 20 किलोमीटर की परिधि हमारी स्व की धरती है. जिससे बड़ी गहराई के साथ हमारा शरीर जुडा रहता है. उस स्थान की मिट्टी हमारे शरीर में व्याप्त होता है. उस मिटटी का जल ही हमारे शरीर में 70 फीसदी तक होता है. वायु स्वतंत्र है अतः जीवन की अवस्थाओं के साथ बदलता रहता है. बचपन में निचले स्तर पर रहता है, तो जवानी में मध्यम और बुढ़ापे में उच्च पर. अग्नि मिट्टी और वायु का संयुक्त रूप है. अतः यह कुछ स्थानीये कुछ विस्तार रूप के साथ हमारे शरीर में व्याप्त होता है. आकाश सर्वव्यापी है. अतः यह हमारे शरीर में काफी दुरी तक प्रभावित करते हैं. अतः स्वदेशी अच्छा है यदि विशुद्ध स्थानीय हो. हमारा शरीर उसी को संतुलित रूप में धारण कर सकता है यह धारण शरीर को संतुलित रखता है. शरीर को संतुलित रखना ही निरोगी जीवन है.
लेकिन, आज स्वदेशी के नाम पर हुआ क्या है? केन्द्रित व्यापार खड़ा हो रहा है. कहीं की मिट्टी को कहीं के लोगों को खिलाया जा रहा है. दो विरुद्ध भूगोल को जोड़ने का व्यर्थ और अत्याचारिक व्यवस्थता बनाई जा रही है. सरकार उन्हें संरक्षण भी दे रही है. कारन – अभी तक सरकारों को इसकी समझ नहीं बन पाई है. – कारन ; आज के आधुनिक विज्ञान को इसकी समझ नहीं है.
आज के मीडिया की तरह केवल समस्या बता देना विषय नहीं होना चाहिए. समस्या है तो उसका समाधान भी होना चाहिये. समस्या का समाधान / उपाय बताना ही पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए. पर दुःख, समस्या को और बड़े संकट के रूप में लिखना / दिखाना आज की मीडिया का मुख्य विषय रह गया है. यही कारन है की आज का मीडिया साधन कम और समस्या अधिक हो गया है.
जीवन में जब सब कुछ स्वदेशी हो तब जीवन का आनंद है. भाषा स्वदेशी, भोजन स्वदेशी, वस्त्र स्वदेशी, तकनीक स्वदेशी, राजा स्वदेशी – तभी मन में आएगा विचार स्वदेशी. स्वदेशी विचार हमें मुक्ति की ओर ले जाता है. मुक्ति का अर्थ जहाँ से हमारा उदय हुआ है, वहीँ हमारा विलय हो जाना. हमारा विलय होना का अर्थ हमारे शरीर से नहीं, बल्कि हमारे उस शरीर से है जो हमारी आखों से दिखलाई नहीं देता. यह शरीर तो स्वदेशी मिटटी से बनी है स्वदेश में ही अग्नि संस्कार के साथ विलय हो जायेगा. बात उस मूल शरीर का है जिसके कारन इस शरीर को पांच महाभूतों से धारण करना पड़ा.
इसलिए स्वदेशी बनिए. अपने नजदीक के किसानों के आनाज खाइए. ऐसा ही फल, फूल और सब्जी खाइए. डब्बा बंद भोजन जहर है. उसमे कीड़े न लगे इसीलिए पहले से ही उसमें जहर मिला है. जिसे कीड़े भी नहीं खाते, वह उचे दामों में बाजार दिया जा रहा है.
उठिए ! यदि आप अपने जीवन की गाढ़ी कमाई को यूँ ही अस्पतालों में व्यर्थ नहीं करना चाहते तो स्वदेशी बनिए. जितना हो सके, उतना ही बनिए. लेकिन आज से शुरू तो हो जाइये. पुरुषोत्तम श्री रामजी ने स्वदेशी की स्थापना के लिए लड़ाई लड़े. भगवान श्री कृष्ण ने इसी स्वदेशी के लिए जीवन भर लड़ते रहे.
अब समय आ गया है चेतने का. नींद से उठिए और स्वदेशी हो जाइये. संकट सामने है. सरकारें समाधान नहीं निकल सकती. समाधान तो भारत की जनता के पास है. इच्छा की, स्वदेशी हो जाने की इच्छा की. स्वदेशी अच्छा है. हो जाइये, अच्छा बन जाइये.
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