भगवान श्रीकृष्ण के पदस्पर्श से पुनीत हुई द्वारकानगरी में चतुर्थ अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन आरंभ !

देश को बचाने के लिए भाषण नहीं, पुरुषार्थ करो ! – मनसुखभाई सुवागीया

चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन के उद्घाटन समारोह पर गव्यसिद्ध निर्देशिका का विमोचन करते हुए बाएं से सूर्य योगी उमा शंकर जी, गव्यसिद्धाचार्य गुरुकुल्पति डॉ. निरंजन भाई, स्वामी श्रीधराचर्या जी महाराज, मनशुख भाई सुहागिया, प्रो किशोरचंद बलदानिया, डॉ. जी मणि, गव्यसिद्ध चंदुभाई सुरानी एवं गव्यसिद्ध भीमराज शर्मा.

द्वारकानगरी, गुजरात (१९ नवंबर २०१६) ‘जिन्हें अपने देश की समस्याएं देखकर यातना नहीं होती, वे मनुष्य नहीं, पत्थर हैं । क्योंकि, पत्थर में भावभावनाएं नहीं होतीं । आज प्रत्येक व्यक्ति केवल भाषण करने में मग्न है । प्रत्यक्ष कार्य करने के लिए कोई आगे नहीं आता । जब तक भारतीय स्वयं परिश्रम नहीं करेंगे, तब तक भारत का उत्कर्ष असंभव है । देश को बचाने के लिए भाषण की नहीं, पुरुषार्थ की आवश्यकता है ।’ ये विचार हैं, जलक्रांति के प्रवर्तक, गीर गायों के पुनरुज्जीवक और ‘फ्लोटेक इंजीनियिंरग’ प्रतिष्ठान के प्रबंधसंचालक श्री मनसुखभाई सुवागिया के । उन्होंने अपना यह विचार, लेउवा पटेल समाजभवन, द्वारका, गुजरात में आरंभ हुए चतुर्थ अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन का उद्घाटन करते समय व्यक्त किया ।

चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन में उपस्थित जनसमूह.

पंचगव्य और गोविज्ञान के विषय में ज्ञानवर्धन के लिए प्रतिवर्ष तीर्थक्षेत्रों में महासम्मेलन आयोजित किया जाता है । इस वर्ष यह सम्मेलन १९ से २१ नवंबर के मध्य द्वारकानगरी में आयोजित किया गया है ।

कार्यक्रम के उद्घाटन-सत्र में सूर्ययोगी उमाशंकरजी ने भी मार्गदर्शन किया तथा उन्होंने तुरंत ऊर्जा देनेवाली कुछ श्वसनक्रिया वहां उपस्थित लोगों से करवाई ।

कार्यक्रम का संचालन गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा ने किया । इस अवसर पर गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा ने २ ग्रंथों का तथा अपने व्याख्यानों के पेनड्राइव का प्रकाशन किया ।

क्षणिकाएं

१. उद्घाटन-सत्र के आरंभ में पुराने द्वारका गांव में प्रभात फेरी निकाली गई थी । इस पेâरी में गोमाता का महत्त्व बतानेवाले फलक हाथों में पकडकर जनजागृति की गई । इस फेरी का नेतृत्व सूर्ययोगी उमाशंकरजी ने किया । द्वारकानगरी के बहुसंख्य लोग गुटखा खाते हैं । गुटखा से जिनका मुंह बंद है, वे स्वयं पर होनेवाले अन्याय के विरुद्ध नहीं बोल सकते । इसलिए व्यसन मुक्ति के प्रबोधन फलक भी इस फेरी में कार्यकर्ता लेकर चल रहे थे ।

द्वारिका प्रभात फेरी 3

अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन का दूसरा दिन

मार्च २०१७ से पंचगव्य निर्मित औषधियों और अन्य उत्पादों का ऑनलाइन वितरण आरंभ करेंगे ! – गव्यसिद्धाचार्य गुरुकुलपति निरंजन भाई वर्मा

गव्यसिद्धाचार्य गुरुकुल्पति डॉ. निरंजन भाई.

द्वारकानगरी, गुजरात (२०.११.२०१६) ‘देशभर के अनेक गोपालक थोडी मात्रा में पंचगव्यों से उत्पाद बनाते हैं। इन उत्पादकों को अपने उत्पादों के विक्रय की चिंता रहती है । यह चिंता दूर करने के लिए तथा पंचगव्यों से बने उत्पाद भारत सहित विदेशों में भी उपलब्ध कराने के लिए मार्च २०१७ तक ‘गव्य हार्ट’ नाम से ऑनलाइन वितरण व्यवस्था आरंभ करूंगा’, यह बात गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मागुरुजी ने द्वारका में आरंभ चतुर्थ अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन के दूसरे दिन मध्याह्न सत्र में कही । उन्होंने आगे कहा कि ‘गव्य हार्ट’ विश्व की पहली ऐसी व्यवस्था होगी, जिसमें उत्पाद-निर्माण विवेंâद्रित होगा; परंतु वितरण व्यवस्था वेंâद्रित रहेगी । इस पूरी व्यवस्था के प्रमुख पदों पर महिला कार्यकर्ता होंगी । इस व्यवस्था का एक ‘ऑनलाइन एप’ रहेगा । इस एप से विश्व में कहीं से भी पंचगव्य के उत्पाद मंगाए जा सवेंâगे । विश्व में कहीं भी ये उत्पाद घर पहुंचाने की सुविधा क्रमशः आरंभ की जाएगी ।’

गोमाता को काटना, दुःखद ! – डॉ. (श्रीमती) शीला टावरी

अपने भाषण में पृथ्वी फाउंडेशन की डॉ. (श्रीमती) शीला टावरी ने कहा कि ‘भारत में प्राचीन काल में दूध बेचा नहीं जाता था । गाय दूध के लिए नहीं, खेती के लिए पाली जाती थी । गोहत्याबंदी के समर्थन में गुजरात शासन ने सर्वोच्च न्यायालय में जो प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत किया है, उसमें लिखा है कि ‘गाय का गोबर कोहिनूर हीरे से अधिक मूल्यवान है ।’ गोमूत्र सबसे अच्छा कीटनियंत्रक है । फिर भी, आज भारत में प्रतिवर्ष ढाई करोड गायें काटी जाती हैं, जो अत्यंत दुःखद है ।’

पंचगव्य चिकित्सापद्धति को वैकल्पिक उपचारपद्धति कहना अनुचित ! – डॉ. मणि, संचालक, सेल थेरपी इन्स्टीट्यूूट, मदुरै, तमिलनाडु.
सेल थेरपी इन्स्टीट्यूट, मदुरै, तमिलनाडु के डॉ. मणि ने अपने भाषण में कहा कि आज सभी पूरब के देशों में उनकी अपनी उपचारपद्धति को मुख्य उपचारपद्धति तथा एलोपैथी को वैकल्पिक (अल्टर्नेटिव) उपचारपद्धति माना जाता है; परंतु जहां-जहां अंग्रेजों का शासन था, वहां-वहां एलोपैथी मुख्य उपचारपद्धति है और अन्य सब वैकल्पिक उपचारपद्धतियां हैं । हम आज भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त नहीं हो पाए हैं, इसी का यह प्रतीक है । वास्तविक, पंचगव्य चिकित्सा की भांति सब भारतीय उपचारपद्धतियां मुख्य उपचारपद्धतियां हैं और एलोपैथी वैकाqल्पक है ।

वर्मागुरुजी ने समस्याओं का उपाय बताया है ! – श्री. कमल टावरी

‘अतिरिक्त सोच कार्य नियोजन आयोग’ के श्री. कमल टावरी ने अपने अध्यक्षीय समीक्षा भाषण में गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा गुरुजी के कार्य का गौरव करते हुए कहा कि ‘आज प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी समस्या सुनाता है । ऐसी स्थति में निरंजन वर्मागुरुजी ने सभी समस्याओं का हल बताया है ।’

इस सम्मेलन में भारतभर से लगभग ९०० गो-प्रेमी आए थे । इस अवसर पर ५९ पंचगव्य चिकित्सकों को व्यावसायिक प्रमाणपत्र दिया गया।

गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा गुरुजी ने सनातन के कार्य का किया गौरव !
प्रातःकालीन सत्र में सबको मार्गदर्शन करते हुए गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मागुरुजी ने कहा कि र्धािमक अनुष्ठानों के लिए सबको सनातन के ही कर्पूर का उपयोग करना चाहिए; क्योंकि वह शुद्ध है और सनातन संस्था बहुत शुद्धता से कार्य करती है।

मोक्षभूमि द्वारकानगरी में चल रहे चतुर्थ अखिल भारतीय पंचगव्य महासम्मेलन का समापन

भगवान श्रीकृष्णजी ने ही सम्मेलन आयोजित करवाई ! – गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा गुरुजी

द्वारकानगरी, २१ नवंबर (वार्ता.) – सम्मेलन के समापन सत्र में गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्माजी ने भावसुमन अर्पित करते हुए कहा कि ‘सम्मेलन की तैयारी के लिए ५ दिवस पूर्व जब मैं द्वारका आया, तब अकेला था । उस समय मैंने संपूर्ण रूप से द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्णजी की शरण जाकर प्रार्थना की, ‘यह महासम्मेलन आप ही करवा लीजिए ।’ इसके उपरांत उनकी ही कृपा से मुझे ५ पांडव (कार्यकर्ता) मिले । उन्होंने सम्मेलन का पूरा उत्तरदायित्व संभाल लिया । आज भगवानजी की कृपा से यह महासम्मेलन सफल हो रहा है ।’

कालभैरवाष्टमी के दिन अमर बलिदानी राजीव दीक्षितजी का जन्मदिन तथा स्मृतिदिन भी है । प्रतिवर्ष इस दिन का औचित्य साधकर पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन का आयोजन किया जाता है । द्वारका में आयोजित इस सम्मेलन का आज समापन हो रहा है ।

सम्मेलन के अंतिम दिन भारतभर से आए ४३० विद्र्यािथयों को ‘गव्यसिद्ध’ पदवी की दीक्षा दी गई । भारतभर से आए गोप्रेमियों ने गोसेवा के कार्य में हुए अनुभव बताए । गोमाता तथा उनसे मिलनेवाले दूध, दही, घी, गोबर तथा गोमूत्र, इन पंचगव्यों को मानव शरीर में विद्यमान सप्तचक्रों का संबंध वर्मागुरुजी ने अपने मार्गदर्शन में बताया । इस सत्र में भारतीय जनता को देशी गायों का संवर्धन करने के लिए आवाहन किया गया । भारतभर से आए कार्यकर्ता अपने घर से घी के दीये लाए थे । सूर्यास्त के समयये दीये सूर्यदेवता को अर्पण कर सम्मेलन का समापन किया गया ।

अगले वर्ष का महासम्मेलन हरियाणा के कुरुक्षेत्र में तथा २०१८ का महासम्मेलन आदि शंकराचार्य के पैतृक गांव केरल के कालडी में होने की घोषणा की गई ।