कोरोना को लेकर पूरे देश में मचे हाहाकार में एक बात एकदम स्पष्ट हो गयी है कि जिसकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है उसके लिए यह संक्रमण जानलेवा सिद्ध हो रहा है ऊपर से देश की चिकित्सा पर एलोपैथी का एकाधिकार एवं प्रशासन द्वारा आयुर्वेद, सिद्ध, होमियोपैथी एवं यूनानी चिकित्सा के साथ सौतेला व्यवहार है। बात सिर्फ यहीं तक नहीं रुकती बल्कि सरकारी हस्पतालों में व्याप्त भ्रष्टाचार और निकम्मापन एवं प्राइवेट हस्पतालों की लूट आग में घी सा काम कर रही हैं।
तो ऐसे हालात में एक मध्यम और गरीब वर्ग का व्यक्ति क्या सिर्फ तिल-तिल करके मरने को मजबूर हो जाएगा??
तो उत्तर है नहीं और बिल्कुल नहीं!!
ऋषियों की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उसके महान पूर्वजों अर्थात ऋषियों ने देवताओं से सीखी आयुर्वेद विद्या में लिखित , सभी जनमानस के स्वास्थ्य के लिए सरल, प्रभावी एवं जीवन रक्षक उपाय बताए हैं।
पल्लव टाइम्स  कोरोना महामारी को लेकर लगातार बचाव के तरीके अपने पाठकों को बताता आया है और आगे भी बताता रहेगा।
आज के लेख के माध्यम से आयुर्वेद शास्त्रों में वर्णित दिनचर्या के वो कर्म जो हमें किसी भी जानलेवा बीमारी से आसानी से बचा सकते हैं।
आयुर्वेद शास्त्रों में वर्णित “दिनचर्या” का अर्थ है वो आहार(भोजन) एवं विहार(सोना-जागना,,उठना-बैठना इत्यादि) जो एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन करना चाहिए।
दिनचर्या के पालन से तीनों दोष (वात-पित्त और कफ़)  और अग्नि संतुलित रहते हैं और जिनके दोष-अग्नि सम हैं उन्हें या तो संक्रमण होगा नहीं या होगा भी तो सहज साध्य होगा।
१. ब्रह्म मुहूर्त में उठना: भोगी और प्रमादी हुए भारतीयों ने सूर्योदय से पहले उठना छोड़ दिया है और अधिकतर शहरी भारतीय सूरज उगने के बाद उठ रहे हैं जिससे उनके तीनों दोष कुपित हो रहे हैं, सूर्योदय के बाद उठने वालों को भयावह कब्जियत हो रही है जिससे शरीर में आम(टॉक्सिन्स) जमा हो रहा है और जहां आम होगा वहां ज्वर अवश्य होगा।इसलिए अगर किसी भी से संक्रमण से बचना है तो सुबह सूर्योदय से पहले उठना ही होगा।
२. उठते ही पानी ना पीएं: सुबह सोकर उठने पर हमारी जठराग्नि एकदम मंद होती है और उठते ही बिस्तर पर हम गटागट पानी के गिलास अपने पेट में उलटने लगते हैं, यह पीया हुआ पानी हमारी मंद पड़ी जठराग्नि को घोर मंद कर देगा। इसी मंदाग्नि से शरीर में आमदोष (टॉक्सिन्स) पैदा  होगा जो संक्रमण का मुख्य कारण है, इसलिए उठते ही कुछ भी ना खाएं, ना पीएं बल्कि टहलें या घर के काम करें जिससे मंद पड़ी अग्नि फिर से प्रखर हो जाए।
३. अभ्यंग करना: शुद्ध तिल तेल या नारियल तेल से सम्पूर्ण शरीर पर मालिश करने से सम्पूर्ण शरीर में रक्त प्रवाह अच्छा हो जाता है, मांसपेशियां मजबूत और सुकोमल हो जाती हैं, अग्नि प्रखर होती है। संक्रमण काल में सीने और कमर की मालिश करने से वात एवं कफ दोनो का क्षमन होता है और जिसके फेफड़ों में कफ एवं वात कुपित नहीं होता उसके फेफड़े एकदम सुरक्षित रहते हैं।
४. सूर्यनमस्कार करना: अभ्यंग करने के उपरांत प्रतिदिन सूर्य की उपस्थिति में सूर्य नमस्कार करने से सूर्य ऊर्जा(विटामिन डी) शरीर को मिलती है एवं शरीर में वायु का संचालन सुचारू होने से शरीर लचीला होता है एवं मल-मूत्र त्यागने की क्रियाएं सहज होती हैं जिससे आमदोष शरीर में टिक नहीं पाता।
५. स्नान: प्रतिदिन शीतल जल से स्नान करने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है और भोजन अच्छे से पचकर जीर्ण हो जाता है।
६. दो समय भोजन: दिन में स्वस्थ व्यक्ति को सिर्फ दो बार पूर्ण आहार लेना चाहिए और एक-दो बार अल्पाहार के रूप में फल इत्यादि ले सकते हैं जिससे प्रखर अग्नि का लाभ लेकर भोजन को पचाया जा सके। क्योंकि जीर्ण हुआ भोजन आमदोष पैदा नही करता और संक्रमण होने की संभावना कम हो जाती है।
७. शारीरिक श्रम: स्वस्थ व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने हेतु नियमित रूप से शारीरिक श्रम करना चाहिए क्योंकि इसके बिना अग्नि पूरे दिन प्रखर नही रह सकती, पैदल चलना भी एक श्रेयस्कर कर्म है जिससे अग्नि प्रदीप्त रहती है।
८. समय पर सोना: रात्रि में समय पर सोने वालों की शारिरिक एवं मानसिक थकान नहीं होती, क्योंकि शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए व्यक्ति की वायु कुपित होकर व्याधि उत्पन्न करती है, और देर से सोने वालों का पित्त कुपित हो जाता है इसलिए रात्रि में जल्दी सोकर सुबह सूर्योदय से पहले उठने वालों के दोष सम रहते हैं और संक्रमण से बचाव होता है।
उपरोक्त दिए गए दिनचर्या कर्म को श्रद्धा पूर्वक करने वालों के मन में भय नहीं रहता और सम-दोष, सम-अग्नि शरीर में संक्रमण होना आसान नही होता।

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