आज एक अटपटे विषय के लिए कुछ अटपटे उदाहरणों से शुरुआत करनी पड़ेगी जिससे विषय स्पष्ठ हो सके।क्या मोहम्मद गौरी,बाबर जैसे विदेशी आक्रांता स्वदेशी कहलाने योग्य हो सकते हैं? क्या पोलर बियर,कंगारू या जिराफ जैसे जीवों को स्वदेशी जीव कहा जा सकता है?क्या क्रिश्चियनिटी या इस्लाम को स्वदेशी धर्म या मान्यता कहा जा सकता है?क्या अंग्रेजी,फ्रेंच या चीनी भाषा को स्वदेशी भाषा कह सकते हैं?उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर कोई भी नासमझ,अनपढ़ व्यक्ति भी “ना” ही देगा


लेकिन किसी भी बात को जबरन सिद्ध करने वाले इसको दूसरे ढंग से भी सिद्ध कर देंगे की विदेशी मोहम्मद गौरी,बाबर आक्रांता जरूर थे लेकिन बाद में वो भारत प्रेमी हो गए और यहीं राज किया,उनकी संताने तो भारतीय हो गईं,पोलर बियर,कंगारू या जिराफ को भारत के चिड़ियाघर में रखा जा सकता और उनके बच्चे यहीं के चिड़ियाघर में पैदा भी होते हैं,क्रिश्चियनिटी और इस्लाम इस देश में बहुत सारी जगह सनातन हिन्दू धर्म से भी बड़े हो गए हैं,अंग्रेजी आज संस्कृत,हिंदी,तमिल से भी अधिक मान्यता रखती है,फ्रेंच और चीनी भाषा को सीखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
ठीक इसी तरह यूरोप और अमरीका ने अपनी जलवायु,रोगों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप संक्रमण से लड़ने के लिए पूरी जनसंख्या को वैक्सीन लगाने का एक तंत्र,व्यवस्था विकसित किया।अनेक प्रकार के संक्रमणों से लड़ने के लिए वो अपनी बड़ी जनसंख्या को आये दिन किसी ना किसी वैक्सीन को लगाकर रोग से बचाने का प्रयास करते रहते हैं।पैदा होने से लेकर अपनी पूरी आयु तक के लिए उनके पास एक बड़ा वैक्सीन कार्यक्रम रहता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि वहां प्राकृतिक औषधियों(तुलसी,नीम,गिलोय,लवंग,काली मिर्च जैसी लाखों) की घोर कमी है,आयुर्वेद जैसे सत्य सनातन विज्ञान को स्थापित करने वाले महाबुद्धिजीवी ऋषियों का नितांत अभाव होना।


लेकिन फिर भी उन्होंने अपने लिए एक स्वदेशी तंत्र,व्यवस्था अधूरा विज्ञान के बल पर ही सही लेकिन अपनी व्यवस्था तो खड़ी कर ही ली।
वहीं उसके उलट पूरी दुनिया का मार्ग प्रशस्त करने वाला विश्वगुरु भारत आज ऋषियों द्वारा स्थापित सत्य सनातन आयुर्वेद विज्ञान को छोड़कर यूरोप/अमरीका से आयी वैक्सीन मान्यता को जबरन पूरे देश पर थोपने में लगा है।और उसे थोपने के लिए उसके प्रशासन ने उसे “स्वदेशी वैक्सीन” कार्यक्रम की मान्यता भी दी है।
क्या यूरोप/अमरीका के वैक्सीन कार्यक्रम को स्वदेशी कहने से, दिन-रात ढिंढोरा पीटने से वो वाकई स्वदेशी हो जाएगा??
हाँ हम भारत वासियों को इसे अपनाने से कोई परहेज नहीं होता अगर हमारे पास सत्य सनातन आयुर्वेद विज्ञान का “त्रिदोष-सिद्धान्त” नहीं होता,हमारे पास तुलसी,गिलोय,अश्वगंधा,नीम जैसी करोड़ों औषधियाँ बहुतायत में नहीं होती, हमारे ऋषियों द्वारा विकसित चिरायु देने वाला सभी रोगों से लड़ने वाला “च्यवनप्राश” नहीं होता,हजारों प्रकार के काढ़े नहीं होते, संक्रमण फैलाने वाली वसंत ऋतु के बाद संक्रमण रोकने वाली ग्रीष्म ऋतु नहीं होती।


लेकिन देश के प्रशासन ने दिन रात विदेशी मान्यता,विदेशी आवश्यकता,विदेशी अधूरे अधकचरा विज्ञान से विकसित वैक्सीन को स्वदेशी की खाल पहनाने का ठेका उठा ही लिया है।

यूरोप/अमरीका किसी भी वैक्सीन को जनता में लगाने के लिये उसके कई वर्षों तक परीक्षण करता है क्योंकि अप्राकृतिक तत्वों से बनी(जैसे उसी बीमारी का सुप्तावस्था वाला वायरस,फीटल बोवाइन सीरम-गाय के भ्रूण का रक्त,बेहद खतरनाक प्रीसरवेटीव घालमेल) वैक्सीन के बीसियों साल भी घोर दुष्परिणाम आ ही रहे हैं।


आज भी यूरोप और अमरीका के पेटेंट्स पर आधारित भारत में उत्पादित वैक्सीन(कोविशील्ड और कोवैक्सीन) जिसे सस्ती लेबर कॉस्ट,सस्ता कच्चा माल होने के कारण यूरोप अपने यहां उत्पादित करा रहा है और एक छद्म बुद्धि सोच की यहां उत्पादित होने से उसे स्वदेशी का झूठा चोला पहनाकर भावुक भारतीयों की भावनाओं को भुनाकर पूरी जनसंख्या को आसानी से लगवाया जा सके।

तथाकथित स्वदेशी वैक्सीन की बेहद अटपटी विशेषताएं********************************************१. दुनिया और देश को कोरोना महामारी से बचाने का एकमात्र उपाय सिर्फ वैक्सीन हो सकता है अगर यही सत्य है तो देश में आयुर्वेद,होमियोपैथी,यूनानी,सिद्ध चिकित्साओं को पढना-पढ़ाना बन्द कर देना चाहिए २. वैक्सीन लगने के बाद भी आपको कोरोना हो सकता है ३. वैक्सीन लगवाने के बाद भी आपको दम घोंटू मास्क लगाना होगा,दो गज की दूरी बनानी होगी और हाथों को दिन-रात केमिकल वाले सैनिटाइजर से धोना होगा४. वैक्सीन लगवाने के बाद अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो सरकार/प्रशासन/निर्माता कंपनी जिम्मेवार नहीं होगी क्योंकि आपसे पहले सहमति पत्र भरवाकर ही वो लगाई जा रही है की में स्वेच्छा से वैक्सीन लगवा रहा/रही हूँ और कुछ भी होने पर में ही स्वयं जिम्मेवार रहूंगा/रहूंगी५. यह कार्यक्रम पूर्णतया स्वेच्छिक है लेकिन अगर आपको नौकरी करनी है,समय से वेतन चाहिए,स्वास्थ्य सुविधाएं निर्बाध चाहिए तो प्रशासन आपको इस स्वेच्छिक वैक्सीन को जबरन लगाने के लिए लगातार मजबूर कर रहा है लेकिन इस स्वेच्छिक वैक्सीन को आप अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर ना लगवाने का अनुरोध करेंगे तो आपकी नौकरी जा सकती है,वेतन कट सकता है या रोका जा सकता है।


उपरोक्त इतनी विशेषताओं वाला तथाकथित स्वदेशी वैक्सीन कार्यक्रम लगातार देश के नागरिकों पर थोपा जा रहा है।


लेकिन दुनिया में लगातार हो रही हजारों लोगों की मृत्यु,मानसिक विक्षिप्तता,अंगों का पक्षाघात से बुद्धिजीवी समाज स्तब्ध है।


डेनमार्क,नॉर्वे और आइसलैंड में भारत से उत्पादित एस्ट्रा-जेनका और सीरम इंस्टिट्यूट की कोविशेल्ड वैक्सीन से लोगों के खून में भयंकर क्लोटिंग(थक्के जमना) होने के कारण पूरे यूरोप में कोविशेल्ड वैक्सीन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गयी है।वहीं देश के करोड़ों लोगों पर वैक्सीन लगाने के बाद यूरोप की रोक और दुष्परिणामों को देखते हुए प्रशासन सकते में आ गया है और उसकी जांच-पड़ताल में लग गया है,लेकिन जिन करोड़ों लोगों को लगा दी गयी है कल उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हो जाए तो उसका जिम्मेवार कौन होगा??
वैक्सीन लगने के बाद लगातार सैकड़ों लोगों की हो रही मृत्यु,मानसिकविक्षिप्तता,पक्षाघात होने के बाद भी अगर इसे जारी रखा जाता है तो इसके घोर दुष्परिणाम आएंगे और कई पीढ़ियों को दर्द भुगतना पड़ेगा।


आयुर्वेदानुसार वसंत ऋतु में कफ का स्वाभाविक प्रकोप होने से संक्रामक रोग हजारों वर्षों से फैलते ही आये हैं एवं ऋषियों द्वारा बताई गयी वसंत ऋतुचर्या का पालन करके हम संक्रमण से आसानी से बचते रहे हैं।आज अपने देश के अलावा पूरी दुनिया को आयुर्वेद का “त्रिदोष सिद्धान्त” एवं ऋतुचर्या विज्ञान समझाकर हम पूरी दुनिया का पथ प्रशस्त कर सकते थे लेकिन “विनाश काले विपरीत बुद्धि” पर चलकर हमने विनाशकारी अमरीकी/यूरोपीय वैक्सीन सिद्धान्त को अपनाकर ना सिर्फ अपने समाज को झूठ में धकेला अपितु विश्वगुरु की छवि को बदलकर नकलगुरु बन गए।
स्वदेशी “च्यवनप्राश” स्वदेशी “काढ़ा” तो हो सकता है लेकिन विदेशी पेटेंट्स,फंड्स और मान्यता पर देश में उत्पादित वैक्सीन कभी भी स्वदेशी नहीं हो सकती।

साभार, पल्लव टाइम्स

3 comments on “तथाकथित स्वदेशी वैक्सीन पर अब यूरोप में भी रोक

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