चेन्नै. ऋषि-मुनियों की मोक्षदायिनी धरती, भारत अर्थात भा माने ज्ञान, रत माने लीन रहने वाला देश, अब भोग की नित – नई परिभाषाएं लिख रहा है। मोक्ष पाने के लिए पाप-पुण्य को परिभाषित करने वाला देश भोग को परिभाषित करने वाले यूरोप और अमरीका को भी अब पीछे छोड़ चुका है।

गंगाजी जैसी पवित्रतम नदियों वाले देश ने अपनी भोग रूपी गिद्ध दृष्टि अपनी सभी नदियों पर गाड़ दी है। कभी मोक्षदायिनी कहे जाने वाली उसकी नदियां अब घोर भोग की वस्तु बन गयी हैं। गंगाजी पर टिहरी जैसा बड़ा बांध खड़ा करने के बाद गंगोत्री तक तीस नए छोटे बड़े बांध बनाना पवित्र गंगा के उसके बचपन में ही दम घोंटने के बराबर है।

भोगी प्रशासन ने अब अपनी गिद्ध दृष्टि यमुना जी पर डाल दी है। 2 दिसंबर 2020 में पर्यावरण मंजूरी मिलने के बाद पवित्र यमुनाजी पर “लखवार-व्यासी” नाम की बहुआयामी बांध परियोजना का काम बस अब शुरू ही होने वाला है। ये यमुनाजी का दम घोटने वाला पहला बांध होगा।

204 मीटर की ऊंचाई वाला बांध 70 मीटर ऊंची किसी इमारत जितना होगा। इस बांध परियोजना का 50% से अधिक हिस्सा वन्य क्षेत्र है जिसके बनने के बाद सबसे अधिक दुष्प्रभाव इसके वन एवं वन्य जीवों पर पड़ेगा।

दुर्भाग्य से इसके प्रभाव में आने वाला समस्त वन्य क्षेत्र का उजाड़ना तय है क्योंकि अब इस देश के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का अंश मात्र भी नहीं हैं जो सम्पूर्ण मानव, पशु-पक्षी, वन्य जीव एवं समस्त धरा को मोक्ष का साधन मानकर उसकी रक्षा और न्याय करते हों बल्कि अब इस देश में ऐसे राजा हैं जो अपनी जनता को महा – भोगी बनाने हेतु समस्त प्रकृति का विनाश करने में तत्पर हैं।

आज देश के राजा और उसका प्रशासन ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनाने के चक्कर में खतरनाक रूप से प्रकुति को रौंदने और भोगने में लीन हैं। सभी तरफ चार से आठ लेन की सड़कों का भयंकर जाल बनाने हेतु भयंकर पेड़ों की कटाई हो रही है, सड़के बनाने हेतु अरावली के पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है, बेतहाशा सीमेंट, लोहे की खुदाई की जा रही है और देश की 50% जनसंख्या को 2030 तक शहरों में बसाने हेतु राक्षसी गति से शहरों का विस्तार गांवों को निगलकर किया जा रहा है।

ऋषियों का देश भारत गांवों में बसता था जो अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए आत्मनिर्भर था, जिसके पास तालाबों, पोखरों और बावड़ियों में अपना पानी था, भोजन अन्न के लिए अपने खेत थे जो सभी तरह की साग-सब्जी, फल, नौ अनाज पैदा करते हुए पूर्ण आत्मनिर्भर थे, दूध के लिए गायमाता, भैंस, भेड़-बकरी थी तो ईंधन के लिए लकड़ी और उपले थे. 18 विशेष ज्ञाति जिसे आज जाति कहा जाता है थे मतलब जुलाहे से लेकर कुम्हार, सुनार, नाई, चर्मकार सभी हुनर वाले एक दूसरे की आवश्यकता पूर्ति करते हुए आत्मनिर्भर थे। हर गांव में गौचर भूमि और जंगल था। अपने गांव में पूरी एक दुनिया बसा कर आत्मनिर्भर, सम्पन्न और बेहद सुखी होकर मोक्ष प्राप्ति में लीन थे।

वहीं भोगी हुए देश ने ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनने के लिए शहर बनाने का रास्ता बनाया जिसके पास अपना कुछ नही है, उसके पास पीने के लिए स्वछ जल का स्रोत्र नहीं है इसलिए गंगाजी का दम घोटने के बाद अब यमुनाजी पर बांध बनाने जा रहे हैं।

कभी पांडवों ने बेहद सुंदर इंद्रप्रस्थ नाम का शहर बसाया था जो आज दिल्ली के रूप में स्थापित है। पिछले 70 सालों में इसका विस्तार हुआ लेकिन अब इसे उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर तक, हरयाणा में सोनीपत तक राजस्थान में अलवर तक बढ़ाने की तैयारी हो रही है लेकिन दुर्भाग्य से शहरों की जमीन इतनी मेहेंगी होती है कि ये अपने सभी जंगलों, तालाबों, पोखरों, गौचारभूमि को सबसे पहले खाते हैं, जनसंख्या घनत्व ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं के कारण बहुत अधिक होता है, इसलिए अपने पानी की आपूर्ति के लिए सबसे पहले अपने आस पास की नदियों को निचोड़ते हैं लेकिन जब उससे भी प्यास नही बुझती तो सुदूर प्रदेश के प्राकृतिक जल संसाधनों पर आतंकी दृष्टि रखते हैं।

जनपद देहरादून के निकट लखवार में यमुनाजी पर 204 मीटर ऊंचे बांध के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है और बहुत जल्द उसपर काम शुरू होने वाला है।

भोगी व्यवस्था के सपने

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अविरल बहती यमुनाजी पर इतना ऊंचा बांध बनाकर बरसात के अत्यधिक पानी को रोकने का लक्ष्य है क्योंकि दो महीने यह प्राकृतिक जल बह जाता है और शहर की हवस का शिकार नही हो पाता। इसलिए बांध के माध्यम साल भर बहने वाले जल से कई गुणा अधिक जल को रोककर साल भर आवश्यकता अनुसार दिल्ली के लिए पानी छोड़ा जाएगा।

300 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना भी लगाई जाएगी जिससे फोकट में बिजली भी मिले।

इस प्रकार की परियोजनाएं किसी भी आम आदमी को बेहद आकर्षक लग सकती हैं की बहने वाला पानी पीने, सिचाई के लिए अच्छा है और बिजली उत्पादन भी दे रहा है, लेकिन प्रकृति के साथ ऐसी भोगी व्यवस्था के उसके लाभ से कई गुना अधिक उसके दुष्परिणाम हैं जो बताए नही जाते।

क्यों है घातक अविरल बहती नदियों पर इतने ऊंचे बांध?

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अविरल बहती नदियां पानी के साथ बहते हुए पहाड़ की मिट्टी भी लाती हैं, साल भर में जब पानी कम होता है तो पहाड़ी मिट्टी के कारण उसका बहाव स्वयं ही बाधित होता है लेकिन वर्षा ऋतु में अत्यधिक जल के कारण बेहद तेज जल बहाव से नदियां अपनी सफाई स्वयं कर लेती हैं और यह चक्र स्वयं नियंत्रित होता है।

इसलिए लाखों वर्षों से हमसे महाज्ञानी हमारे ऋषियों ने हिमालयी नदियों पर कभी कोई बांध नही बनाया अपितु उनके विज्ञान को समझकर उन्हें अविरल बहने दिया।

  1. बांध के कारण बांध से पहले बहुतायत में ये मिट्टी जमा होती रहेगी और बांध के आगे भी ऐसा ही होगा क्योंकि मॉनसूनी बरसात के बहाव को तो अब ये नियंत्रित कर लेंगे।

आने वाले समय में पहले से मानव कृत्यों से दूषित यमुनाजी घातक रूप से दूषित हो जाएगी!!!

  •  जब यमुनाजी पर इतना ऊंचा बांध बनाकर पानी को रोका जाएगा तो बांध के पीछे कई किलोमीटर लंबी झील बनेगी जिसमे पानी रुका होगा और बेहद संवेदनशील हिमालय के पहाड़ों की तलहटी में रुका पानी उन्हें खोखला करते हुए विनाशकारी भूकंप लाने में सहायक होगा।
  •  उस बांध के बनने के कारण वहां का वन्य क्षेत्र समस्त विविधता से भरे वृक्ष,पशु-पक्षी, वन्य जीवों की तबाही होना तय है, क्या अब इस देश में पूजनीय वृक्ष और समान जीव आत्मा वाले वन्य जीवों के लिए कोई स्थान नही बचेगा, सिर्फ अपनी मूर्खताओं के लिए ऋषि मुनियों की भूमि को हम ऐसे ही नष्ट करते रहेंगे?
  •  इतनी ऊंचाई वाला बांध अगर किसी कारण से टूट गया तो क्या वास्तव में हम दिल्ली को इसके विनाश से बचा पाएंगे??

लेकिन ट्रिलियन डॉलर भोगी अर्थव्यवस्था हेतु प्रकृति को निर्मम तरीके से ऐसे ही कुचला जाएगा। ऋषियों और वेदों की शिक्षा पर चलने वाले भारत में भगवान राम जी जैसे मर्यादापुर्षोत्तम व्यक्तित्व ने जन्म लिया, जिन्होंने समुद्र पर सेतु बनाने हेतु भी समुद्र से विनय पूर्वक आग्रह किया लेकिन आगे चलकर उन्ही की पीढियां सत्ता में आने हेतु उनका मंदिर तो बनवा रही हैं लेकिन उनके राम राज्य के एकदम उलट मोक्षदायिनी भारत भूमि को भोग की भूमि बनाकर तबाह करने में लगी हैं।

साभार, पल्लव टाइम्स

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