चेन्नै. शीत ऋतु जा रही है और ग्रीष्म ऋतु से पहले वसंत ऋतु आया है। तीव्र ठंड और तेज गर्मी के संधि काल को ही वसंत ऋतु कहते हैं। आयुर्वेद में यही संधि काल रोगों का काल है। क्योंकि शरीर ना तो जाती हुई ऋतु अनुसार रह पाता है और ना ही आने वाली ऋतु अनुरूप ढल पाता है लेकिन ऋषियों ने इसी स्थिति को समझते हुए ऋतुचर्या अध्याय लिखा जिससे हम उसके अनुसार अपने भोजन और चर्या का अभ्यास करके शरीर को निरोगी रख पाएं।

आइए वसंत ऋतु की सावधानियों का निरीक्षण करके उसके अनुरूप आचरण करके स्वस्थ रहने का अभ्यास करें।

ये “Do’s एंड Don’ts” का जमाना है, अरे भैया ये तो हमारे यहाँ सदियों से है बस हमारी भाषा में यानि आयुर्वेद वाली में उसे “पथ्य-अपथ्य” कहते हैं पर विडम्बना मॉडर्न लोग पथ्य-अपथ्य को पुराना दकियानूसी मानते हैं। हम ठहरे वाग्भट्ट जी के चेले मतलब मध्यम-मार्गी हैं। चलो मध्य-मार्ग है मॉडर्न वालों के लिए “Do’s एंड Don’ts” और हम जैसे देसी लोगों के लिए पथ्य-अपथ्य।

आजकल मॉडर्न वालों ने सब जगह कब्ज़ा कर लिया है क्योंकि हमारी बातों का तिरस्कार वो एक जुमला बोलकर, लिखकर कर देते हैं कि “इसका कोई वैज्ञानिक आधार/प्रमाण नहीं है”।

कोरोना के इस जमाने में लौंग, तुलसी, गौमूत्र, काली-मिर्च, त्रिकटु आदि का बड़ा मजाक उड़ाया जा रहा है क्योंकि आधुनिक वाले कह रहे हैं कि इसका कोई वैक्सीन बना ही नहीं है और लौंग, तुलसी…… का वैज्ञानिक प्रमाण उन्हें मिला नहीं है। इसलिए इन टोटकों के चक्कर में ना फंसे और एलोपैथी के डॉक्टर/हॉस्पिटल से जल्दी से जल्दी मिलें। क्योंकि जिस देश के घर-घर की रसोई में आयुर्वेद बैठा है वो डॉक्टर/हॉस्पिटल आसानी से नहीं जाते, इसलिए उन्हें बार-बार जुमला बोलकर उनके विश्वास को तोड़ो और कुंठित करो।

BBC हिंदी की एक रिपोर्ट में रिपोर्टर कहता है आयुर्वेद और होमियोपैथी के चक्कर में फंसकर अपनी जान दांव पर ना लगाएं। आजकल तो हमारे हिंदी वाले तथाकथित देसी अखबार भी कहते हैं कोरोना की कोई दवाई अभी बनी ही नहीं है।

सबसे अधिक  मन तब दुखी होता है जब कोई भी बड़ा आयुर्वेदिक डॉक्टर अपनी बात प्रबलता से नहीं रखता की आयुर्वेद में इसका वैज्ञानिक और प्रामाणिक उपचार सदियों से है क्योंकि आयुर्वेद के बड़े डॉक्टर भी एलॉपथी के हनी-ट्रैप में फंसे हैं की वो वायरस की चिकित्सा ढूंढ रहे हैं जबकि आयुर्वेद में तो त्रिदोष यानि वात-पित्त-कफ की चिकित्सा की जाती है।

आयुर्वेद के तीनों महान ऋषि किसी भी रोग का कारण बताते हुए कहते हैं

“रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता “।१।।२८।।

                                                       सूत्रस्थान

अर्थात रोग निज हो या आगन्तु दोनों ही कारणों में वात, पित्त या कफ में से कोई एक, दो या तीनों के विषं (बिगड़ने) होने से ही रोग उत्पन्न होता है।

किन्तु बड़े-बड़े आयुर्वेदाचार्य ऋषियों की मूल बात छोड़ कर वायरस से घबराये बैठे हैं। (सभी के लिए नहीं, कुछ को छोड़कर)

चलिए इस बात को यहीं सभी पाठकों के विवेक पर छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं।

पहले के तीनों लेखों में हमने वसंत ऋतु में होने वाले मूल प्राकृतिक असंतुलन की बात कही थी।

फिर दोहराते हुए की इस ऋतु में

कफ का प्रकोप होना

अग्नि यानि जठराग्नि का मंद होना।

तो आयुर्वेदिक Do’s एंड Don’ts होगा

कफ के प्रकोप को कम करो

और अग्नि बढ़ाओ।

पहले Don’ts वैज्ञानिक आधार के साथ

1. दही मत खाओ: क्योंकि ये कफ वर्धक है, गुरु है

2. दूध थोड़ा कम पियो क्योंकि ये भी कफवर्धक है

3. दिन में मत सोना क्योंकि दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है

4. मीठा-खट्टा और नमक जैसे तीन स्वाद थोड़े कम खाना क्योंकि ये तीनो कफवर्धक हैं

5. पचने में गुरु यानी भारी वस्तुएं कम खाना जैसे उरद-राजमा-छोले इत्यादि क्योंकि ये पचने में भारी हैं और कफवर्धक हैं

6. गुड़-कफवर्धक है

7. नया अनाज  नहीं खाना

8. सूखे मेवे जैसे काजू-पिस्ता-बादाम अल्प मात्रा में ही खाएं क्योंकि ये भी कफवर्धक हैं

9. रूम टेम्परेचर वाला पानी-ठंडा पानी नहीं पीना।

10. अधिक घी-तेल का प्रयोग इस ऋतु में अच्छा नहीं क्योंकि इससे खाद्य पदार्थ गुरु यानि पचने में भारी हो जाता है।

अब Do’s वैज्ञानिक आधार पर

1. दही नहीं खाना पर असली छाछ/मट्ठा/तक्र/मोर हींग-जीरा-अजवाइन डालकर अवश्य पीना क्योंकि छाछ कफनाशक, लघु और अग्निवर्धक होती है

2. दूध पीना ही हो,बच्चों को देना हो तो हल्दी/सौंठ/अदरक डालकर देने से कफ की वृद्धि अधिक नहीं करता एवं जिन बच्चों को सर्दी जल्दी होती हो उनके रात में सोने से पहले दूध ना दें।

3. दिन में नहीं सोना लेकिन भयंकर झपकी आये तो कुर्सी पर कमर सीधी रखकर यानि बैठकर एक झपकी ले लेना क्यूंकि बैठकर झपकी लेने से कफ-वृद्धि नहीं होती।

4. कड़वा-तीखा-और कसैला स्वाद वाले खाद्य पदार्थ का अधिक सेवन करना। इस ऋतु में थोड़ा तीखा खाना अच्छा है।

5. पचने में हलकी मूंग छिलका-काली मसूर और तुअर दाल अच्छी हैं।

6. पुराना अनाज ही खाना क्योंकि पुराना अनाज रुक्ष होकर कफ की वृद्धि नहीं करता और पचने में हल्का हो जाता है।

7. दिन भर गर्म/गुनगुना जल का ही सेवन करना

8. सूखे भुने चने जबर्दस्त ऊर्जा से भरपुर हैं और रुक्ष होने के कारण कफनाशक भी हैं।

9. अजवाइन, हींग, काली-मिर्च, अदरक, हरड़, पीपर आदि मसाले, गर्म मसाला चटपटा खाना अच्छा है।

10. कांजी का पानी अवश्य पियें क्योंकि ये अग्निवर्धक होने के कारण भोजन का पाचन बढ़िया से करता है और भूख भी खोलता है।

वसंत ऋतु के आयुर्वेदिक Do’s एंड Don’ts का ध्यान रखकर अपने शरीर को निरोगी रखें एवं स्वस्थ रहें।

साभार, पल्लव टाइम्स

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