गोवंश आधारित भारत की पुनर्स्थापना का समय

बहुत सारे लोगों को 1966 का आकाल (सूखा) आज भी याद होगा. भूखमरी की यह स्थिति थी की अमेरिका से लाल गेहूं मंगवा कर खाना पड़ा था. अमेरिका ने अपनी शर्तों पर हमें गेहूं दिया था. जिसके कई दुष्परिणाम बाद में झेले गए.

उस समय भारत का पंजाब “गेहूं का कटोरा” मान जाता था. यही समय था जब भारत में खाद्यान के प्रति आत्मनिर्भर होने की दिशा में कई प्रयोग किये गए. जिसमें से एक था मशीन और जहर आधारित खेती. इससे कुछ हद तक अनाज में हमारी आत्मनिर्भरता बढ़ी लेकिन हमने खेतों को जहर से भर दिया. उत्पादन बढ़ा लेकिन छोटे किसानों की स्थिति अभी भी नहीं सुधारी. पानी के दोहन के कारन पानी का लेयर 700 फूट से भी नीचे गिर गया.

यह सब हुआ उस कृषि क्रांति के कारण‚ जिसके सूत्रधार थे अमेरिका के कृषि विशेषज्ञ नर्मन बोरलोह‚ जिन्होंने रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का उपयोग कर एवं ट्रैक्टर से खेत जोत कर कृषि उत्पादन को दुगना – चौगुना कर दिखाया. इधर भारत में कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को राजी कर लिया और बड़े पैमाने पर रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं का आयात शुरू हो गया.

अब भारत में अनाज के भंडार भर गए. पर क्या इससे बहुसंख्यक‚ छोटी जोत वाले किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी हैॽ क्या वजह है कि आज भी देश में इतनी बड़ी संख्या में किसानों को आत्महत्या करनी पड रही है. इसके साथ ही कुछ देसी कंपनियों ने ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण बनाने शुरू कर दिए. शास्त्री जी के बाद जो सरकारें आई उन्होंने इसे आमदनी का अच्छा स्रोत मान कर इन कंपनियों के साथ सांठगांठ कर भारत के किसानों को रासायनिक उर्वरकों‚ कीटनाशक दवाओं की ओर ले जाने का काम किया. परिणाम सदियों से गाय‚ गोबर और गो मूत्र का उपयोग कर नंदी से हल चलाने वाले किसान ने महंगी खाद और उपकरणों के लिए कर्ज लेना शुरू किया. इससे एक तरफ तो कृषि महंगी हो गई क्योंकि उसमें भारी पूंजी की जरूरत पड़ने लगी. किसान बैंकों के कर्ज के जाल फंसते गए. सदियों से कृषि के लिए उपयोगी बैल अब कृषि पर भार बन गए‚ जिससे उन्हें कटने के लिए बेचा जाने लगा. इससे ग्रामीण बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ी. क्योंकि इससे गांव की आत्मनिर्भरता का ढांचा ध्वस्त हो गया. अब हर गांव – शहर के बाजार पर निर्भर होता गया‚ जिससे गांव की आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली गई. क्योंकि उपज के बदले जो आमदनी गांव में आती थी उससे कहीं ज्यादा खर्चा महंगे उपकरणों‚ रासायनिक खाद‚ कीटनाषक‚ डीजल आदि पर होने लगा. इस सबके दुष्परिणाम स्वरूप सीमांत किसान अपने घर और जमीन से हाथ धो बैठा. अंतत: उसे शहर की ओर पलायन करना पड़ा.

इस तरह भारतीय कृषि व्यवस्था और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने का बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का षड्यंत्र सफल हो गया.

चिंता की बात यह है कि आज की भारत सरकार को भी भारत की कृषि की कमर तोड़ने के इस अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के बारे में सब कुछ पता है‚ मगर इन कंपनियों ने शायद सबके मुंह पर दशकों से चांदी का जूता मार रखा है. इसीलिए ये लोग दिखाने को यूरिया में नीम मिला कर देने की बात करते हैं. पर उर्वरक मंत्रालय केमिकल मंत्रालय के साथ जुडा हुआ है. जबकि उर्वरक कृषि मंत्रालय का विषय है.

एक ओर कृषि मंत्रालय‚ ‘नेशनल सेंटर फॉर आर्गेनिक फार्मिंग’ के केंद्र हर जगह स्थापित कर रहा है. दूसरी तरफ यही केंद्र जोर – शोर से ‘वेस्ट डिकम्पोजर’ का प्रचार भी कर रहा है. वहीं सारे एग्रीकल्चर कॉलेजों के पाठ्यक्रम में रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग का विधि सिखाई जाती है न कि प्राकृतिक कृषि की. क्योंकि रासायनिक खाद‚ कीटनाशक और झूठे उन्नत किस्म के बीज का एक अंतरराष्ट्रीय माफिया काम कर रहा है‚ जो कृषि प्रधान भारत को दूसरे देशों पर निर्भर होने के लिए मजबूर कर रहा है.

इस माफिया संगठनों के साथ प्रशासन के लोगों की भी सांठ – गांठ है. अगर इस माफिया पर भारत सरकार का नियंत्रण होता तो देश में दस लाख किसान आत्महत्या नहीं करते. अकेले महाराष्ट्र में साढ़े तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. अब इस माफियाओं के गुट में एक और माफिया शामिल हो गया है जो शराब बनाने वाले कम्पनियों और राजनीतिज्ञों की सांठ – गांठ से सक्रिय है.

इन सभी में सुधार के लिए भारतीय गोवंश आधारित कृषि व्यवस्था की पुनर्स्थापना करनी होगी. हर गांव या कुछ गांव के समूह के बीच भारतीय गोवंश के संरक्षण व प्रजनन की व्यवस्था करनी होगी. गांव के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज चारागाहों की भूमि को पट्टों और अवैध कब्जों से मुक्त करवा कर वहां गोवंश के लिए चारे का उत्पादन करना होगा. आज भारत देश में सात लाख गांव है और अगर दस – दस समर्थक भी एक – एक गांव के लिए काम करें तो केवल 70 लाख समर्थकों की मदद से हर गांव में गौ विज्ञान कृषि केंद्र की स्थापना हो सकती है. भारत फिर से कृषि प्रधान देश बन सकता है. भारत विश्व के लोगों को केमिकल मुक्त भोजन दे सकता है.

  • साभार, पल्लव टाइम्स

2 comments on “गोवंश आधारित भारत की पुनर्स्थापना का समय

  1. Very true just for the sake of vaccination whole nation can’t come to a standstill.. what people should understand is that they should start consuming Ayurvedic panchagavya medicines if they have to come out safely through all mess.
    People are dying because of wrong treatment ..Take treatment preventive treatment You will not land up in hospitals..secondly Use your funds wisely and never never let lockdown stop your work.. Have faith in our traditional medicines go back to shashtras everything treatment is mentioned.. and practised from ages.. lastly believe in this spiritual mother our Gaumata her pathies and wonderful vanaspatis that our country is blessed with.. Jai Gaumata.. Gavyasiddh Vaishali Thorat-Gunjal

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