चेन्नै. ‘प्राणवायु’ अर्थात प्राण को चलाने वाली वायु. जिसे आज के विज्ञान में ‘ऑक्सीजन’ के नाम से जानते हैं. आज सम्पूर्ण विश्व में इसी ऑक्सीजन की कमी का ढिंढोरा पीटा जा रहा है. अपने देश भारत में भी इसकी कमी होने को लेकर त्राहि मची हुई है.

वेद अर्थात मुगलों और अंगरेजों के पूर्व के भारत का विज्ञान ; कहते हैं ‘यतो गावस्ततो वयं’. इस सम्पूर्ण सृष्टि में जीवों (विशेषकर मनुष्य) का अस्तित्व इसीलिए है, क्योंकि इस धरती पर गाय है. जीवों के अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक तत्व है ‘प्राणवायु’, यानी ऑक्सीजन (O2). जो गाय के पास है.

मगही भाषा में एक कहावत है “गोदी में बच्चा और गली में ढिंढोरा”. अर्थात माँ की गोदी में बच्चा मजे से सो रहा है और पास – पड़ोस में आवाज़ दी जा रही है कि बच्चा कहीं खो गया है. हमारे देश की सरकारों की हालत यही है. शुद्ध और सम्पूर्ण प्राकृतिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) गाय के पास है और इसे अन्यत्र खोजा जा रहा है.

वर्ष 2013 में तंजावूर (तमिलनाडु) स्थित शास्त्रा विश्वविद्यालय (जिसकी प्रयोगशाला आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के कुशल प्रयोगशालाओं में से एक है) और तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित पंचगव्य विद्यापीठम (भारतीय तकनीकी ज्ञान को समर्पित गुरुकुलीय विश्वविद्यालय, जिसका सपना अमर बलिदानी राजीव भाई दीक्षित ने देखा था.) के संयुक्त प्रयास से गाय के गोमय (गोबर) पर अनुसन्धान किया गया, जिसमें विषय सामने आया कि सबसे अधिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) गाय के पास है.

गाय का गोमय इस सृष्टि का एक अद्भुत तत्व है जिसमें सबसे अधिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) है. इतना ही नहीं उनका गोमूत्र, छीर (दूध) भी अद्भूत तत्व है. इन तत्वों में भी प्राणवायु की अधिकता है. सबसे अधिक सोचनीय विषय यह है कि इन तत्वों को यदि रूपांतरित (प्रोसेस) किया जाये तो इनमें प्राणवायु की अधिकता बढ़ती ही जाती है. इसे कुछ उदाहरण से समझ सकते हैं.

गाय का कच्चा गोमय, (शुद्ध भारतीय प्रजाति की गाय, जो 5 घंटे चारागाह, कृषि भूमि या जंगल में चरने के लिए विचरण करने वाली है, उनका गोमय.) जिसका यदि रासायनिक विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि उसमें लगभग 23 प्रतिशत प्राणवायु है. यदि इसे सूर्य के प्रकाश में जीवाणु उत्पन्न होने से पूर्व सुखा कर गौरी (गोमय कंडा) में रूपांतरित किया जाये तो उसमें प्राणवायु की मात्रा 7 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इस गौरी को यदि अग्नि में समर्पित कर गोमय कोयला बना दिया जाये तो फिर से प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है. इस कोयले को यदि फिर अग्नि में समर्पित किया जाये और गोमय भस्म बना दिया जाये तो प्राणवायु की मात्रा बढ़ कर 46 प्रतिशत से अधिक हो जाती है. प्राणवायु के बढ़ने का क्रम यहीं नहीं रुकता. कुछ विशेष अग्नि प्रक्रिया से प्राणवायु की मात्र 60 प्रतिशत तक  बढाई जा सकती है.

पंचगव्य विद्यापीठम ने वर्ष 2011 में गव्यों (भारतीय प्रजाति की गाय का गोमय, गोमूत्र और क्षीर) को औषधीय आधार मानकर एक सम्पूर्ण चिकित्सा विधा स्थापित किया. जिसके अंतर्गत एक डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है. अभी तक 6 हजार से अधिक युवाओं ने इस पाठ्यक्रम को पूरा किया है और वे इस कार्य में लगे हुए हैं.

इस पाठ्यक्रम में ‘गोमय भस्म’ को मनुष्य शरीर के लिए प्राणवायु की औषधीय आपूर्ति के रूप में लिया गया. तब से पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान में गोमय भस्म को एक मुख्य औषध के रूप में जोड़ा गया है. जिसका परिणाम मानुष शरीर के सभी रोगों में अद्भुत है. क्योंकि इसमें प्राणवायु के अलावा और 21 आवश्यक तत्व हैं. जिनकी आवश्यकता मानुष शरीर की होती है.

आज भी भारत में 2 करोड़ से अधिक शुद्ध भारतीय प्रजाति की गाय है. एक गाय एक दिन में औसतन 10 से 20 किलोग्राम गोमय प्रदान करती है. एक किलोग्राम गोमय से 75 ग्राम गोमय भस्म बनता है. जिसमें यदि औषतन 50 प्रतिशत प्राणवायु का गणित लगाया जाये तो स्पष्ट है कि एक किलोग्राम गोमय में लगभग 37 ग्राम (40 मिली लीटर) प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन है, जिसे बड़ी सहजता और बिना कोई बड़े कारखाने के निकाला जा सकता है. आगे इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि एक लीटर ऑक्सीजन के लिए 25 किलोग्राम गोमय की आवश्यकता है.

मैंने वर्ष 2017 से ही अपने व्याख्यान में इस विषय को जोड़ा है कि जिस प्रकार भारत देश में पानी ; जिसे प्यासे को पिलाने की नि:शुल्क परम्परा थी, आज बिकाऊ हो गया, उसी प्रकार एक दिन प्राणवायु को भी बाजार की वस्तु बना दिया जायेगा और इस देश में जीने के लिए श्वांस भी नि:शुल्क नहीं मिलेगी.

सरकारें तो गाय के नाम पर मुंह सिकोड़ने वाली है. ऑक्सीजन के नाम पर फैकटरियां बैठाई जा रही हैं. उन फैकटरियों से भी वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ेगा. जिसकी कोई चिंता नहीं होगी, क्योंकि ये फैकटरियां सरकार कर (टैक्स) देगी और ड्रग्स माफियाओं को भरपूर लूट वाली कमाई देगी.

जागो ! भारतवासी, जागो !

1 comment on “अब श्वास बनेगी बाजार की वस्तु

  1. हमने कल रात्रि को ही गव्यहाट से कुछ सामान बरनाला पंजाब मंगवाया है जिसमे 2 किलोग्राम गोमय भस्म भी है !
    गोलोक वासी गव्यसिद्ध ओम प्रकाश पांडे जी की कमी महसूस हो रही है उनके मार्गदर्शन में पंजाब प्रांत में गोमाता के पंचगव्य का प्रचार प्रसार करने की भाव था

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