चेन्नै। भारत और यहाँ के बाजार धीरे – धीरे खुल रहा है। बाजार से पहले शराब का बाज़ार खुला। जो दुखदाई है। काँचीपुरम में शराब की बिक्री का नज़ारा देखा तो सर पीट लिया। 2 किलोमीटर लंबी लाईन, वह भी धूप में। जैसे मजमा ओर मेला लग गया। अब तो सरकार की नीतियों पर नहीं, लोगों की बुद्धि पर रोना आ रहा है की “भारत क्या से क्या हो गया”। घर के बर्तन तक बेच डाले शराब के चक्कर में। सरकारें शराब के चक्कर में उजड़ते हुए घरों को देख रही है और देश का प्रधान मंत्री अब शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दे रहा है। न जाने इतना पैसा कहाँ से आएगा?
जानकार बताते बताते हैं की वर्तमान पैकेज का वास्तविक मूल्य केवल 13 लाख करोड़ रुपये है। इसकी कीमत को बड़ा दिखाने के लिए हमने पहले के पैकेजों को जोड़ दिया है जो पहले ही हमारे लोगों, हमारी अर्थव्यवस्था को विफल कर चुके हैं। विमुद्रीकरण, किसान की आय को दोगुना करना, रोजगार और कौशल पैदा करना, इसके केवल कुछ उदाहरण हैं। वह अपने फैसलों में शानदार बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन भीतर कुछ और ही होता है। भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान के रूप में विमुद्रीकरण और काला धन बुरी तरह से विफल हो गये और अपने आप में एक संकट बन गये जबकि भ्रष्टाचार और बढ़ी है।
जानकार मानते हैं की मध्यवर्गीय परिवार के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज सुगंध के बिना गुलाब की तरह है। कोरोना के खतरे पहले से कहीं अधिक बढ़ रहे हैं, और पैकेज में सभी को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक रूप से आवश्यक राशि नहीं है। सामाजिक दूरी की आवश्यकता, अनौपचारिक श्रमिकों के प्रवास और फंसे हुए लोग और लोगों में भय मनोविकार ने देश की जनसांख्यिकी को पूरी तरह से बदल दिया है। वास्तविक आवश्यकता का कोई भी क्षेत्रवार आकलन नहीं किया गया है जो महान पैकेज की अस्पष्टता और खोखलापन को रेखांकित करता है।
पैकेज में छोटे और बड़े दोनों तरह के उद्योग खोलने के लिए हजारों करोड़ रुपये हैं, लेकिन बिना श्रमिकों के कोई उद्योग चलेगा कैसे ? श्रमिक तो घर जा रहे हैं, या भेजे जा रहे हैं? अब तो ज़्यादातर काम भी अनुबंध (कांट्रैक्ट) पर किए जा रहे हैं। केवल कुछ ही श्रमिकों को नियमित और सुरक्षित नौकरियों में छोड़ दिया गया है। प्रश्न यह है कि आवश्यक श्रमिकों की संख्या के बिना कोई उद्योग कैसे पुन: आरंभ कर सकता है? सरकारी पैकेज उद्योगों और व्यापार को दिया जाएगा। फिर पैसा श्रमिकों के हाथ में जाना चाहिए लेकिन श्रमिक हैं कहाँ ? उनके जल्द काम पर लौटने की संभावना भी नहीं है। जब कोरोना तेजी से फैल रहा हो। श्रम उद्योग इस प्रकार पुन: आरंभ नहीं कर पाएंगे। यह श्रम बाजार में और गिरावट लाएगा। इसके अलावा, उद्योग और व्यवसाय मांग की कमी सहित कई कारणों से पूरी तरह से नहीं खुल सकते, क्योंकि अधिकांश लोगों के पास पैसा नहीं है। अत: इसका फायदा किसको मिलने वाला है?