इस समय कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर है लेकिन लोग डर नहीं रहे हैं. भारत में तो बिलकुल डर जैसा नहीं है. लेकिन इसमें एक बड़ी अच्छी बात यह है की इससे आयुर्वेद सहित भारतीय चिकित्सा विधा का महत्त्व बढ़ गया है. पंचगव्य ने तो कमाल कर दिया है. सरकार भले ही चुप रहे लेकिन लोगों ने गौमाता और पंचगव्य की शक्ति को पहचान लिया.

कोविड-19 की चुनौतियों के बीच देश और दुनियाभर में आयुर्वेदिक बाजार के तेजी से आगे बढ़ने का सुकून भरा परिदृश्य दिखाई दे रहा है. पिछले वर्ष 13 नवंबर, 2020 को पांचवें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रस अधानोम घेब्रेसस ने घोषणा की कि डब्ल्यूएचओ भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केंद्र की स्थापना करेगा और इससे विश्व के विभिन्न देशों में परंपरागत और पूरक दवाओं के अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरूकता को मजबूत किया जा सकेगा. इससे चौकने का नहीं ; क्योंकि यह डब्ल्यूएचओ की मजबूरी थी.

यहाँ तक की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा की “आयुर्वेद भारत की विरासत है जिसके विस्तार में पूरी मानवता की भलाई समाई हुई है. जिस तरह भारत दुनिया की फार्मेसी के रूप में उभरा है, उसी तरह पारंपरिक दवाओं का यह केंद्र भारत में वैश्विक स्वास्थ्य का केंद्र बनेगा.”

यह भी सुखद बात है की कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के दौरान भारत के सदियों पुराने आयुर्वेद को दुनियाभर में अपनाया गया है. जैसे – जैसे आयुर्वेद का उपयोग बढ़ता गया है, वैसे – वैसे आयुर्वेदिक दवाइयों का बाजार बढ़ता गया है. भारत सरकार ने कोविड-19 से लड़ने के प्रयासों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक संघटकों के उपयोग की सफल रणनीति बनाई है और दुनिया के कई देशों को आयुर्वेदिक दवाइयों और मसालों का निर्यात किया है. 21वीं सदी में भी पारंपरिक इलाज के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद ने काफी विश्वसनीयता हासिल की है और इससे आयुर्वेदिक बाजार बढ़ा है.

भारत में आयुर्वेदिक दवाइयों का बाजार वर्ष 2019 में करीब 290 अरब रुपये का था, जानकार बता रहे हैं की यह वर्ष 2026 तक बढ़कर 975 अरब रुपये तक पहुंच सकता है. और 2022 में 585 अरब रुपये तक जा सकता है. निश्चित रूप से देश और दुनिया में आयुर्वेदिक बाजार बढ़ रहा है, लेकिन चुनौतियां यही है की इसे ड्रग्स माफियाओं द्वारा लगातार रोका जा रहा है.

निश्चित रूप से इस समय जब डब्यूएचओ ने भारत में पारंपरिक दवाओं के वैश्विक केंद्र की स्थापना सुनिश्चित की है, तब भारत के आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार के बढ़ने की नई संभावनाएं बढ़ी हैं. ऐसे में अब आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को देश और दुनिया में तेजी से बढ़ाने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा. हमें वैश्विक स्तर के कुछ मान्य प्रमाणों को आधार बनाना होगा. उसका दस्तावेजीकरण करना होगा. हमारे द्वारा औषधीय पौधों को रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से पूरी तरह मुक्त रखना होगा. दवाओं के निर्माण में भारी तत्वों का उपयोग रोकना होगा.

चूंकि भारत दुनिया में औषधीय जड़ी – बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसे बॉटनिकल गार्डन ऑफ द वर्ल्ड यानी विश्व का वनस्पति उद्यान कहा जाता है. ऐसे में देश में औषधीय गुणों से भरपूर सैकड़ों तरह के पौधों के अधिकतम उत्पादन की नई रणनीति बनाई जानी होगी. देश में तुलसी, अदरक, लोंग, काली मिर्च, बिल्वपत्र, नीम पत्ता, पान पत्ता, तेज पत्ता, जामुन पत्ती, सोम पत्ती, जैसी सैकड़ों जड़ी – बूटियों के उत्पादन कार्य को बढ़ाया जाना होगा.

हमें आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को बढ़ाने के लिए गौ को भी बचाना होगा. क्योंकि गोमूत्र ही आयुर्वेदिक दवाइयों का शोधक है. वेद सूक्त भी है “गोमूत्र धन्वंतरी”. साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं के लिए उपयुक्त नियमन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी. आयुर्वेदिक इलाज की प्रक्रियाओं का स्टैंडर्ड तय किया जाना होगा. आयुर्वेदिक दवाइयों की पुरानी स्टाइल की पैकेजिंग की जगह आधुनिक पैकेजिंग सुनिश्चित की जानी होगी. आयुर्वेदिक दवाइयों संबंधी शोध को बढ़ाना होगा.

नि:संदेह इससे देश का भारतीय चिकित्सा विज्ञान का बाजार तेजी से आगे बढ़ेगा और आगे चलकर आईटी की तरह यह सेक्टर भारत के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का सबसे सुरक्षित और स्थाई सेक्टर में बदल जायेगा.

साभार, पल्लव टाइम्स

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