2020 में आया कोरोना आज 2021 में और भी जटिल होता जा रहा है, टीवी चैनलों पर लगातार रोगियों से भरे हस्पतालों की तस्वीर और खबरें दिखायी जा रही हैं, समाचार पत्रों के अधिकतर पृष्ठ भी कोरोना की खबरों से भरे हुए हैं। देश में कोरोना को लेकर हाहाकार जैसी स्थिति दिखाई पड़ती है, पर क्या वास्तव में जैसा दिखाया जा रहा है वैसा सच में है या पूरे समाज को भयाक्रांत करके हाहाकार मचाया जा रहा है।
समस्या कोरोना है लेकिन पिछले साल की तरह इस साल भी समाधान के रूप में समस्त देश को लॉकडाउन के रूप में परोसा जा रहा है।
क्या वास्तव में लॉकडाउन इस समस्या का समाधान हो सकता है????
शायद इस समस्या के समाधान के लिए हमने अपने मन, आत्मा और चेतना का प्रयोग किया ही नही, अर्थात हमारी समस्या का समाधान हमने अपनी बुद्धि और विवेक से करने का प्रयास किया ही नहीं। ऋषियों की संतान अर्थात भारतवासियों ने पश्चिम के समाधानों को बिना बुद्धि, विवेक जस का तस अपना लिया और समस्या दिन प्रतिदिन जटिल बनाते गए और आगे भी बनाते जा रहे हैं।
जनवरी 2019 में कोविड नाम की पश्चिम से आया संक्रमण पूरी दुनिया की तरह हमारे बुद्धि-विवेक को भी हर कर ले गया।
पूरी दुनिया की तरह हमने उसे महामारी मान लिया तब जब पूरे देश में इस संक्रमण से मरने वालों की कुल संख्या 169275 (जनवरी 19 से अप्रैल 20) जो कुल आबादी अगर 140 करोड़ मानी जाए तो मात्र 0.012% ही है और अगर कुल संक्रमितों की संख्या 13,358,805 से निकाली जाए तो मात्र 1.26% निकलता है।
क्या वास्तव में हम इसे महामारी या पैनडेमिक मान सकते हैं???
जैसे ही हमने इसे महामारी घोषित किया तो प्रशासन और जनता दोनों के हाथ पैर फूलने शुरू हो गए और समस्या लगातार जटिल होती गयी। 
पहले से एलोपैथी के हाथ चिकित्सा व्यवस्था होना और पैनडेमिक एक्ट लगाकर सम्पूर्ण रूप से इसका समाधान उस पैथी से ढूंढना जिसके पास इसका समाधान है ही नहीं के कारण जटिलताएं विकराल रूप धारण कर रही हैं।
क्योंकि एलोपैथी में वो अलग अलग वायरस को खोजकर उसके जटिल,महँगे और अप्रभावी उपचार दे रहे हैं वहीं आयुर्वेद में दोषों की सहज चिकित्सा से एकदम सरल,स्वदेशी और प्रभावी उपचार संभव था।
आज अपने ही जनक देश भारत में आयुर्वेद को महामारी एक्ट लगाकर प्रतिबंधित कर दिया गया है, प्रशासनिक स्तर पर आयुर्वेद से चिकित्सा नही की जाएगी। 
जब हस्पताल भरने लगे और प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए तो एक दिन थाली बजवाकर अगले दिन से तीन महीने का लॉकडाउन लगाकर जनता को भुखमरी के मुहाने ओर छोड़ दिया गया।
पिछले साल हम वैक्सीन आने का रोना रहे की वैक्सीन आते ही समाधान निकल जाएगा, पर क्या पश्चिम के पेटेंट्स,कच्चे-माल से बनी वैक्सीन 140 करोड़ लोगों की भारीभरकम जनता को समाधान दे सकती है।
फिर वैक्सीन की दो खुराकों के बाद तीन खुराकों की पैरवी की गयी और अब कहा जा रहा है प्रत्येक वर्ष इसकी कम से कम तीन खुराकें लेनी होंगी। क्या वाकई में 140 करोड़ लोगों को प्रत्येक वर्ष तीन खुराकें दी जा सकती हैं।
क्या खुराकें लगने तक देश को लॉकडाउन करके रहा जा सकता है??? 
समस्या तो यहां भी खत्म नही होती क्योंकि जिस वायरस की वैक्सीन ये बना रहे हैं उसने अपने आप को पूर्ण रूप से म्युटेट(अपने आकर-प्रकार और संरचना) कर लिया है और वैक्सीन पर करोड़ों रुपये विकास, उत्पादन और लगाने में आहूत करने के बाद भी समस्या वहीं खड़ी है।हस्पताल भरे हुए हैं, लोग मर रहे हैं और लॉकडाउन लगाकर अन्य सभी लोगों को उनके काम धंधे बंद करके भूखों मरने के लिए छोड़ दिया गया है, देश लगातार कर्जदार होता चला जा रहा है, महँगाई आसमान छू रही है, गरीब और मध्यम वर्ग लगातार गरीब हो रहे हैं बस चंद गिने चुने अरबपतियों और उनके धंधों को बढ़ाने वाले नेताओं को छोड़कर।
वहीं इसके उलट हम आंकड़ों को अपने परिपेक्ष में देखकर निर्णय लेते तो इसे महामारी घोषित नही करते, आयुर्वेद को मुख्य चिकित्सा बनाते तो ना सिर्फ देशवासियों को सुरक्षित रख पाते बल्कि पूरी दुनिया का आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धान्त से नजरिया बदल देते, पूरी दुनिया में आयुर्वेद और उसकी औषधियों का निर्यात होता, लॉकडाउन नहीं लगाना पड़ता और देश की अर्थव्यवस्था कुलांछे मार रही होती।
पूरी दुनिया में आयुर्वेद के ज्ञान से भारतीय संस्कृति का प्रचार होता और अराजकता के माहौल को शांति और खुशहाली में बदला जा सकता था, लेकिन दुर्भाग्य से विश्व गुरु फिर से घोर गुलामी की ओर ही अग्रसर हो रहा है।

साभार, पल्लव टाइम्स

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *