चेन्नै। वार्ता की टेबल पर तो चीनी पक्ष समाधान की बात करता है‚ लेकिन सीमा पर उसके सैनिक वार्ता के उलट व्यवहार कर रहे हैं। इससे लगता है कि संयमित संवाद की भारत की कोशिशें या तो चीन को समझ नहीं आ रही हैं या फिर वो किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने से पहले भारत की शक्ति को तौल रहा है।

इसके लिए भारतीय सेना जागृत है लेकिन चीन को देश के अंदर भी मुंहतोड़ जवाब देना होगा। देशवासियों के बीच यह विचार तेजी से जगह बना रही है कि चीन बातों की नहीं‚ पैसों की भाषा समझता है और उससे निपटना है तो उसकी अर्थव्यवस्था पर हमला बोलना ही पड़ेगा। इसके लिए हर चीनी सामान का बहिष्कार करना होगा। चीन को लेकर गुस्सा अब इतना बढ़ चुका है कि सोनम वांगचुक, कंगना राणावत जैसे कई सेलिब्रिटी भी कहने लगे हैं कि अब समय आ गया है कि चीन को सेना बुलेट से जवाब दे और जनता चीनी वस्तुओं के वहिष्कर से।

सरकार की ओर से चीनी सामान के बॉयकॉट करने का कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुआ है‚ और हो भी नहीं। लेकिन राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों ने चीनी कंपनियों के साथ चल रहे करारों पर सख्ती शुरू कर दी है। रेलवे ने चीन के साथ चार साल पुराना सिग्नल कॉन्ट्रेक्ट रद्द कर दिया है। दूरसंचार मंत्रालय ने भी सरकारी और निजी टेलीकॉम कंपनियों को चीनी कंपनियों की उपयोगिता सीमित करने की सूचना दी है।

भारतीय उपभोक्ताओं से मोटी कमाई करने वाली ई – कॉमर्स कंपनियों को अपने उत्पादों पर उसे बनाने वाले देश का नाम डिस्प्ले करना होता है लेकिन यहाँ भी चीन ने चालबाजी दिखाते हुए अपने उत्पादों पर “ मेड इन चाइना ” लिखना बंद कर दिया है। उपभोक्ताओं को झांसा देने के लिए वो अब इसकी जगह “ पीआरसी “ यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना लिख रहा है। कहीं कहीं पर “एम आई सी” मेक इन चाइना लिख रहा है।

भारत में उसके खेल – खिलौने और सौर ऊर्जा के 90 फीसद बाजार‚ फार्म’ और इलेक्ट्रॉनिक का 70 फीसद‚ टेलीकम्यूनिकेशन‚ टेलीविजन और ऑटो इंडस्ट्री का 25 फीसद‚ स्टील और न्यूक्लियर मशीनरी का 20 फीसद और ऑर्गेनिक केमिकल के 10 फीसद बाजार में हिस्सेदारी हो गई है।

भारतीय स्टार्टअप्स में पिछले पांच वर्षों में उसने करीब 560 अरब का निवेश किया है। वर्ष 2019 – 20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा निवेश भारत में ही किया। चीन हमसे जितना सामान खरीदता है‚ उसका चार गुना से ज्यादा में हमें बेच देता है। इसलिए हमारा सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ ही है। बीस साल पहले भारत – चीन का व्यापार केवल 21 अरब था। पिछले वित्तीय वर्ष में द्विपक्षीय कारोबार 6700 अरब तक पहुंच गया। इसमें हमारा 5380 अरब का आयात और केवल 1318 अरब का निर्यात हुआ यानी 4062 अरब का व्यापार घाटा।

आयात – निर्यात के इसी खेल से निर्भरता के मामले में चीन हम पर भारी पड़ जाता है। चीन अपने कुल निर्यात का केवल तीन फीसद ही भारत को निर्यात करता है। इसीलिए चीनी सामान के बहिष्कार से उसका नुकसान 3 प्रतिशत ही होगा। इसके साथ ही हमारी प्राथमिकता आयात पर निर्भरता को कम करने और अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए आत्मनिर्भर बनने की होनी चाहिए।

केवल ऑनलाइन गेम और एप के घरेलू उत्पादन बढ़ाकर चीन से होने वाले आयात को 25 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। इससे कुल आयात में 5600 करोड़ तक की कमी लाई जा सकती है। दूसरे सेक्टरों में भी घरेलू उत्पादन बढ़ाकर भारत द्विपक्षीय व्यापार में चीन को हरा सकते हैं। हालांकि यह बोलने में जितना आसान लगता है‚ उतना है नहीं। फिर भी यदि अभी से इस दिशा में प्रयास हुए तो दिन दूर नहीं।

जो सामान चीन बेहद सस्ते दामों पर तैयार कर लेता है। इसके लिए केवल कस्टम या एंटी डंपिंग ड्यूटी बढ़ाने से काम नहीं चलेगा‚ इसमें भारतीय उद्योगों को सरकारी मदद की जरूरत भी पड़ेगी‚ जिससे कि उत्पादन बढ़ाकर उसकी लागत को कम किया जा सके।

मेक इन इंडिया के अंतर्गत तैयार हो रहे सामानों की गुणवत्ता पर कभी भी सवाल उठते रहते हैं। इसे दूर करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम में सुधार जरूरी है। यही चुनौती छोटे उद्योगों के साथ भी है। जिसमें सरकार को घरेलू उत्पादकों के साथ आना पड़ेगा। उनको वे सभी सुविधाएं देनी पड़ेगी जो विदेशियों के लिए लाल कारपेट का काम करती है।

 

– साभार, पल्लव टाइम्स

सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ निरंजन कु वर्मा

Sevaratna Gavyasiddhachary
Dr. Niranjan K Verma

Advance Ayurvedik Therepist (TN Govt.), M.D.(panchgavya), M.D.(Cell Medicine), FRSH, FWSAM, Editor – Pallav Times.

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