दूध, तेल, सब्जी ; सब जहरीला हो गया

जब तक भारत गावों का देश था भारत में सभी खाद्य वस्तुएं अमृत के समान मिलती रही थी. जैसे – जैसे भारत शहरों में बदलने लगा उत्पादन मास प्रोडक्शन की ओर बढ़ने लगा. इस मास प्रोडक्शन ने सबसे पहले खाद्य वस्तुओं की क्वालिटी बिगाड़ी. अब स्थिति यह है की हर शुद्ध वस्तु लोगों को डुप्लीकेट लगता है और हर ओरिजिनल वस्तु डुप्लीकेट.

अब दूध को ही देख लें. शुद्ध भारतीय नस्ल की गाय का दूध मिल जाये तो उसमें लोगों को बदबू आती है और दूध के नाम पर जहरीला डेयरी का दूध ठीक लगता है. आज भारत के लगभग सरे डेयरी वाले दूध के नाम पर जहर बेच रहे है. लेकिन लोगों को यही अच्छा लगता है. कारण स्पष्ट है – प्रचार पर टिकी हुई दुनिया है. जिन चीजों का प्रचार होता है उसी का बाजार बनता है. जो प्रचारित नहीं होता उससे लोग दूर भागते चले जाते हैं.

इसकी कुछ बानगियाँ है – नारियल का पानी हेल्थ के लिए अच्छा है. सभी जानते हैं लेकिन इसका कभी प्रचार नहीं होता. यही नारियल का पानी बोतल बंद होने पर कम्पनियाँ बाजार के लिए प्रचारित करने लगाती हैं. और उसे हेल्थ के लिए अच्छा कहा जाने लगता है.

शुद्ध तेल हेल्थ के लिए अच्छा है. इसे कोई प्रचारित नहीं करता है लेकिन यही तेल जब रिफाइन में बदल दिया जाता है तो प्रचार होने लगता है. मास प्रोडक्शन करने वाली कम्पनियाँ प्रचार में उतर जाती हैं. फिर बाजार की मांग को पकड़ने ले लिए मास प्रोडक्शन और फिर उसमें मिलावट उनके रोज – मर्रे का कम हो जाता है.

यूरिया‚ साबुन और गन्दा तेल जैसी खतरनाक चीजों को मिलाकर बनने वाले इस ‘दूध’ में दूध नाम की कोई चीज ही नहीं होती. ये लालची लोग स्वार्थवश मानव सभ्यता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं. क्या इन्हें नहीं पता कि इस दूध को पीकर हमारे नौनिहाल‚ जो देश का भविष्य हैं‚ कितनी बीमारियों के चंगुल में फंस जाएंगेॽ

ज्यादा दूध निकालने के चक्कर में गायों को हर साल गर्भवती करवा दिया जाता है‚ क्योंकि बच्चा होने के बाद दस माह तक वह ज्यादा दूध देती हैं. हर रोज उन्हें ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं ताकि वे ज्यादा दूध दे सकें. परंतु यह इंजेक्शन उनके लिए कितने हानिकारक हैं‚ यह दूध दुहने वाले और डेरी मालिक शायद नहीं जानते. अगर उन्हें पता है तो वह और भी गंभीर अपराध कर रहे हैं‚ क्योंकि जान – बूझकर किसी को मौत के मुंह में धकेलना‚ कानून में अपराध की श्रेणी में आता है.

इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा सात साल के शोध के बाद निकाले नतीजों में पाया कि जिस गाय के दूध को सदियों से हम पूर्ण आहार मानकर पीते चले आ रहे हैं‚ वह भी कीटनाशकों से भर गया है. उसमें भी डाईक्लोरो डाई फिनाइल ट्राइक्लोरोईथेन (डीडीटी)‚ हैक्साक्लोरो साइक्लोहैक्सेन (एचसीएच)‚ डे्ड्रिरन‚ ए्ड्रिरन जैसे खतरनाक कीटनाशक भारी मात्रा में मौजूद हैं. भारतीय खाद्य अपमिश्रण कानून एक किलो में केवल 0.01 मिलीग्राम एचसीएच की अनुमति देता है‚ जबकि आईसीएमआर की रिपोर्ट में यह 5.7 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम निकला है. इसके अलावा दूध में आर्सेनिक, कैडमियम और सीसा जैसे खतरनाक वस्तु मिले हैं. इनसे किडनी‚ दिल और दिमाग तक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं.

अमेरिका में हुए एक शोध में अमेरिकी महिलाओं के दूध में कीटनाशकों के साथ – साथ सौ से भी ज्यादा औद्योगिक रसायन पाए गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि प्रतिवर्ष करीब दो लाख लोग कीटनाशकों के कारण काल के गाल में समा जाते हैं. संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 30 लाख लोग इन जहरों की चपेट में आते हैं जिसमें ज्यादातर बच्चे होते हैं.

ऐसी ही स्थिति शीतल पेयों की है. सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) ने यह बताने की कोशिश की कि आकर्षक विज्ञापनों के जरिए यह कंपनियों जिन शीतल पेयों को आम भारतीयों के गले के नीचे उतार रही हैं‚ वह सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इन शीतल पेयों के जरिए हम ऐसे कीटनाशकों को निगल रहे हैं‚ जिनके लंबे समय तक सेवन करने से कैंसर‚ स्नायु और प्रजनन तंत्र को क्षति‚ जन्मजात शिशुओं में विकृति और इम्यून सिस्टम तक में खराबी आती है.

लगभग ऐसी ही स्थिति बोतलबंद मिनरल वाटर की है. देसी – विदेशी विख्यात कंपनियों के बोतलबंद पानी के दिल्ली में 17 और मुंबई में 13 उत्पादों की जांच हुई और उनमें लिन्डेन‚ डीडीटी‚ क्लोरोपाइरोफोस‚ मेलाथियॉन जैसे कीटनाशक पाए जाने की पुष्टि हुई. सुखद बात यह है की भारत के अधिकांश लोग नगरपालिका या नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला जल अथवा नदियों के पानी को ही पीते हैं.

कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोगों से अनाज‚ सब्जी और फल भी दूषित हो गए हैं. कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से पैदा हुई इन स्थितियों को देखते हुए अनेक देशों ने तो इनका प्रयोग लगभग बंद ही कर दिया है और वे प्राकृतिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करने लगे हैं. जिसमें गोवंश सबसे ज्यादा कारगर है.

हम भारतवासी अपनी परंपरा को छोड़कर पश्चिमी चकाचौंध के पीछे भाग रहे हैं और वे इसकी सच्चाई जानकर भारत की संस्कृति अपनाने में लगे हुए हैं.

  • साभार, पल्लव टाइम्स

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