कोरोना आपात बंदी” ने सभी कुछ वैसे ही नष्ट कर दिया है जैसे भूकंप, सुनामी और बाढ़ की त्रासदी के समय होता है. अंतर इतना ही है की इसमें भौतिक संशाधन नष्ट नहीं हुए. शेष सब कुछ ठप कर दिया है. जो वैज्ञानिक क्लोन बना कर अपने आप को भगवान मान बैठे थे, बिग – बंग – थ्योरी के बाद ईश्वर के दर्शन कर लेने का दंभ भर रहे थे. कोरोना ने उनकी क्षमता को तार – तार कर दिया. सच पूछें तो उन वैज्ञानिकों को अपने झूठे शोध पर शर्म आनी चाहिए.

कोरोना ने सरकारों की कमर तोड़ कर रख दी है. भारत सरकार भी अछूता नहीं है. ऐसे में अब सब कुछ बदलने की आवश्यकता है. समय रहते जो इस तथ्य को समझ लेगा, वो ही आने वाले समय को जीतेगा. जहाँ सरकारों को “कर वसूली” के नियम – कानून को बदलने पड़ेंगे वहीँ देश में “मेकोले शिक्षा” के रूप – रंग और क्रिया प्रणाली को भी बदलना पड़ेगा. बहुमंजिले स्कूल – कालेज और कान्वेंट को भी बदलना पड़ेगा. भीड़ जमा करने वाली शिक्षा व्यवस्थता, स्टूडेंट – टीचर व्यवस्थता और मैम – गाय – गर्ल व्यवस्थता को भी बदलना पड़ेगा.

शिक्षा का डिजिटल स्वरुप लाना पड़ेगा. पढ़ना – पढ़ना सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है. जाति – वर्ण और संस्कारों के आधार पर स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों को बदलना पड़ेगा. कल तक जो बूरा लगता था उसे ही अपनाना पड़ेगा. गुरुकुलों के दो स्वरुप उभर कर निकालेंगे. 1) पूर्व की तरह आवासीय गुरुकुल खुलेंगे. जहाँ बच्चा एक बार गुरुकुल में प्रवेश किया तो शिक्षा पूर्ण कर ही घर वापस जाने की व्यवस्थता होगी. ऐसे गुरुकुलों की संख्या अब तेजी के साथ बढ़ेगी. 2) गुरु बच्चों की पढाई अब ऑनलाइन करेंगे. घर के अन्दर ही (क्लासरूम) पढ़न – पाठन रूम बनाना होगा, जहाँ बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास लेने की सुविधा होगी.

यही कारण है की इसे व्यापक स्तर पर लागू करने की चर्चा शुरू हो गई है‚ लेकिन इसे मानक रूप में स्थापित करने की कई बड़ी चुनौतियां हैं। अगर इसके लाभ के पक्ष की बात करें तो इसने शिक्षा के सुस्त पड़े पहिये को संभावित रफ्तार देने की कोशिश की है। ऑनलाइन मंचों जैसे – जूम‚ मूडल‚ गूगल क्लासरूम अथवा गूगल हैंगआउट‚ स्काईप‚ बेबेक्स‚ वर्चुअल लैब आदि का बोल  – बाल बढ़ा है. बड़ी तेजी के साथ इसका विस्तार हुआ है. बड़े और कॉर्पोरेट इमेज वाले स्कूल – कॉलेज छात्रों को सीखने में मदद के लिए ई – रिसोर्सेज जैसे – एनपीटीईएल‚ स्वंय‚ उडेमी‚ कोर्सेरा‚ एमआईटी कोर्स वेयर के लिंक के जरिए अपडेट कर रहे हैं और उन्हें प्रभावी तरीके से सीखने में मदद भी कर रहे हैं।

लेकिन इसका क्या – क्या दुष्परिणाम होने वाला है यह भविष्य के साये में बंद है. बच्चों को लेकर भविष्य में कई चुनौतिओं का सामना भी करना पड़ेगा. इस पर यदि अभी से कार्य किया जाये तो निश्चित रूप से हम विश्व भर में अपनी पतंग उड़ा सकते हैं.

भारत जैसे विशाल देश में जहां चालीस हजार से भी ज्यादा निजी और केंद्रीकृत विश्वविद्यालय और लाखों छोटे – बड़े स्कूल है‚ वहां ऑनलाइन शिक्षा के प्रसार में बाधाएं बहुत है. इस वर्ग में लगभग 80 प्रतिशत शिक्षण संस्थान आते हैं. देश में लाखों ऐसे स्कूल है‚ जिनके पास न तो आवश्यक तकनीक है न संसाधन. ऐसे में बदलाव की इस कड़ी को सूदूर गांवों में बैठे छात्रों से कैसे जोड़ा जाएगा

एक ओर जहां तकनीकी की अनुपलब्धता‚ उन्नत उपकरण‚ कुशल प्रशिक्षक और आवश्यक संसर्ग आदि इसकी राह में बाधक है तो दूसरी ओर इंटरनेट की खराब कनेक्टिविटी‚ नेट कनेक्टिविटी का छात्रों का सत्र के समय गायब हो जाना‚ सम्पर्क स्थापित करने में मुश्किल‚ ध्यान केंद्रन की कमी अनौपचारिक या कैजुअल उपस्थिति आदि अन्य बड़ी चुनौतियां भी है.

इसलिए भारत में ऑनलाइन शिक्षा सरल नहीं है. इसके लिए संबंधित विकसित प्रणाली को सुदृढ़ करना होगा. सुगमता से छात्रों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही अद्यतन तकनीकी और नवीनतम प्रणालियों से हमें खुद को अपडेट रखना होगा. भारत अभी डिजिटल शिक्षा के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है. साथ ही शिक्षकों को परंपरागत शिक्षा से डिजिटल टीचिंग के रंग – रूप  पर कार्यशाला या इनपुट देने की जरूरत पड़ेगी.

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