आज गाँव ; शहर से कहाँ ?

भारत में पहली बार एक सर्वे किया गया है की भारतीय लोग अपना पूरा दिन किन – किन गतिविधियों में खर्च करते हैं. इस कार्य को किया है भारतीय सांख्यिकी संगठन ने. यह सर्वे एक जनवरी से 31 दिसंबर 2019 के बीच यह सर्वे किया. इसमें 1,38,799 घरों के 4,47,250 लोगों को शामिल किया गया. इसमें परिवार में छह साल से अधिक उम्र के सभी सदस्यों की दिनचर्चा का विश्लेषण किया गया. इनमें 2,73,195 ग्रामीण और 1,74,055 शहरी शामिल रहे. सर्वे के दौरान सुबह 4 बजे से लेकर अगले दिन सुबह 4 बजे तक के कामकाज के बारे में बातचीत की गई है.

इस सर्वे की सत्यता कितनी है पता नहीं. लेकिन इस प्रकार के सर्वे आज के लिए कई ऐसे विषयों का राज खोल सकते हैं जिसकी आज आवश्यकता है. हमारा समाज और उसके साथ हमारी सोंच किस तरफ जा रही है, लोगों को किस प्रकार की मुश्किलें आ रही है इसे समझ सकते हैं. इस सर्वे के अनुसार एक सामान्य भारतीय एक दिन में सबसे अधिक 726 मिनट अपनी देखभाल पर खर्च करते हैं. जबकि एक ग्रामीण पुरुष 737 मिनट अपनी देखभाल पर खर्च करते हैं. इस रिपोर्ट में स्वयं की देखभाल में सोना, खाना-पीना, सेहत पर ध्यान देना, इलाज कराना, अपनी देखभाल के लिए कहीं आना – जाना आदि शामिल है. यह समय लगभग 12 घंटे से अधिक का है.

– विश्लेषण यह है की हम अपने ऊपर 12 घंटे से अधिक का समय देकर भी बीमार और निर्धनता के शिकार हैं. अत: हमें अपनी देख – भाल पर किये गए 12 घंटे का फिर से नियोजन करना पड़ेगा.

इसके बाद सबसे अधिक समय रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों पर खर्च किया जाता है. एक दिन में सामान्यत: 429 मिनट रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों पर खर्च किए जाते हैं. इस मामले में गांवों वालों के मुकाबले शहर वालों को ज्यादा समय देना पड़ रहा है. सबसे अधिक शहरी पुरुषों को 514 मिनट (लगभग 9 घंटे) रोजगार के लिए खर्च करने पड़ रहे हैं. इनके मुकाबले ग्रामीण पुरुषों को 434 मिनट खर्च करने पड़ रहे हैं. अगर महिलाओं की बात करें तो ग्रामीण महिलाओं को 317 मिनट और शहरी महिलाओं को 375 मिनट रोजगार व उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए बिताने पड़ रहे हैं.

  • अर्थात ग्रामीण वातावरण श्रम के लिए अभी भी शहरों से अच्छा है. शहरों में सामान्यत: रोजगार के लिए बहुत दूर – दूर तक जाना पड़ता है. क्योंकि वहां यातायात की तेज सुविधा है. पर समय तो नष्ट होता ही है.

ग्रामीण परिवेश की महिलाएं अपने दिन के 301 मिनट अपने परिवार के सदस्यों के लिए खर्च कर देती हैं और इसके बदले उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता. यह पश्चिम के देशों की सोंच है. भारत में तो यह एक प्राकृतिक जिम्मेदारी मणि जाती है. जबकि इनके मुकाबले शहरी महिलाएं 293 मिनट अपने परिवार के सदस्यों के लिए खर्च करती हैं. इस मामले में ग्रामीण पुरुष 98 मिनट और शहरी पुरुष 94 मिनट ही खर्च करते हैं.

हालांकि लोग समाज के काम करने, सूचनाएं इधर से उधर पहुंचाने, ईमेल, चैट आदि पर भी बड़ा समय खर्च कर रहे हैं. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक लोग दिन में औसतन 143 मिनट सोशलाइजिंग एंड कॉम्युनिकेशन, सामाजिक भागीदारी और धार्मिक कार्यों पर खर्च कर रहे हैं. जबकि संस्कृति, मास मीडिया और खेलों पर 165 मिनट खर्च किए जा रहे हैं.

  • अर्थात अभी भी हम भारत के लोग सोशलाइजिंग एंड कॉम्युनिकेशन से ज्यादा सांस्कृतिक गतिविधियाँ और खेलों पर समय देते हैं. जो की एक सुखद तथ्य है.

सीखने यानी शिक्षा आदि पर भी बड़ा समय खर्च किया जा रहा है. औसतन दिन का 424 मिनट लर्निंग पर खर्च किए जा रहे हैं. इस मामले में शहरी, गांव वालों से थोड़ा आगे हैं. गांवों में 422 मिनट लर्निंग पर खर्च किए जा रहे हैं तो शहरों में 430 मिनट खर्च किए जा रहे हैं.

  • अर्थात गाँव आज भी सीखने – सीखाने में शहरों से पीछे है. यह सीखना – सीखाना क्या है? शिक्षा की बात की जाये तो आज की शिक्षा में व्यावहारिक ज्ञान तो है नहीं. यूरोप की नक़ल है. नौकरी पाने की ट्रेनिंग है. सो आज शहर जहाँ नौकरी की तलाश में भटक रहा है वहीँ गाँव के लोग स्वावलंबन में अधिक लगे हुए है.
  •  साभार पल्लव टाइम्स

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