बॉलीवुड ; “गटर” ? नहीं ; सड़ांध नाली

चेन्नै. सुशांत आत्महत्या जिस पर हत्या की पूरी संभावना दिखलाई दे रही है. यहीं से बॉलीवुड जो सड़ांध मारता हुआ नाली है उसकी सफाई की दिशा में उठा – पटक चालू है. कंगना रानौत जिसने हिम्मत कर सबकी पोल पट्टी खोल रही है वह स्वयं भी दूध की धूली नहीं है. लेकिन उसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी की वह मुंबई से लेकर दाउद इब्राहिम तक के गिरोह में हाँथ डाली है.

यह जग – जाहिर है की बॉलीवुड से बनने वाली ज्यादातर फ़िल्में माफियाओं के काले धन से बनते आ रहे हैं. यूँ कहें की बॉलीवुड माफियाओं के काले धन से चलने वाली इंडस्ट्री है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए. इस कार्य के लिए खान गैंग कितना हावी है, यह भी छुपा हुआ नहीं है. खान गैंग के पीछे अरब का आतंकवादी गिरोह क्षत्र – छाया की तरह साथ रहता है. जिसके कारण खान गैंग पर कोई सवाल नहीं करता. चाहे वह भारत की 80 प्रतिशत जनता का दिल दुखाने वाला दृश्य क्यों न अपने फिल्मों में डाले. पिछले 20 – 25 वर्षों से बॉलीवुड में तो यही चल रहा है.

जितने भी नए खिलाडी आये, सभी को इन लोगों ने पंचर कर दिया. टिके वही, जिन्होंने अरबी माफियाओं के मोहरे बने खान गैंग से मिल कर कार्य किया. भले ही उसमें देश द्रोह के दृश्य रहे हों. इनमें सबसे बड़ा नाम अमिताभ बच्चन और उनकी फेमिली का आता है. भारत के हजारों युवाओं के मन में बॉलीवुड को लेकर अपना करिअर बनाने का सपना रहता है. जिसमें कई अद्भूत प्रतिभा के धनी भी रहे हैं. लेकिन माफियाओं का समूह उसे कुचल देता है. ऐसी कई घटनाएँ बॉलीवुड में घटी है. जब मामला सर के ऊपर से गुजर गया तो सभी की भड़ास अभी दिखलाई दे रही है.

बॉलीवुड के जितने भी कार्य रहे हैं उसमें देश, संस्कृति और धर्म को नीच दिखलाने वाले ज्यादा रहे हैं. इसलिए कहा जा सकता है की बॉलीवुड ने जितना दिया है उससे कहीं ज्यादा नुकसान किया है. बॉलीवुड के जो कलाकार इससे परे हैं वे कहीं न कहीं बॉलीवुड से कन्नी काटते हुए दक्षिण भारत के फिल्म इंडस्ट्री से जुडाव ज्यादा रखते हैं. जिनमें से धार्मिक टी वी सीरियलों के कलाकार ज्यादा हैं. उनका जुडाव बॉलीवुड से ज्यादा नहीं हो पाया है.

बॉलीवुड ने सामाजिक रिश्तों को कब का तार – तार कर दिया है. पुत्री के उम्र की लड़कियाँ जो कलाकार बनने के नाम पर बुड्ढों के साथ ब्याही हो, ऐसे सैंकड़ों उदाहारण मिलते हैं. जैसा की कंगना ने कहा है की नकली हीरो से साथ छोटे से छोटे सीन के लिए भी नकली हीरो के साथ हमबिस्तर होना पड़ता है तब कहीं जाकर मौका मिलाता है. यह उक्ति भी 16 आने सच है. फाइनेंन्सियर से लेकर डायरेक्टर तक और कैमरा मैने से लेकर प्रोडूसर तक को मज़ा देने के बाद कहीं कला दिखलाने का मौका मिले उसे “गटर” कहना गटर की बेइज्जती है. क्योंकि गटर तो शहर के मैल को ढोकर सागर में मिला कर शुद्ध करने वाली व्यवस्थता है. लेकिन यहाँ तो छोटे – छोटे शहरों और गाँव से आने वाली भोली – भाली लड़कियाँ और पुरुष युवा को भी कला प्रदर्शन के लिए देह परोसना पड़ता है.

राज्य सभा संसद जया बच्चन भी ये सभी बातें जानती हैं क्योंकि वे भी इसी सड़ांध नाले से गुजरी हुई स्वार्थी कलाकार हैं. अमिताभ बच्चन के साथ नाचने का मौका जवानी की दहलीज पर मिल गया था. सेटिंग और टांका बच्चन से साथ भीड़ गया. जो आज सांसद होने तक का सम्मान मिल गया. वरना बॉलीवुड की दुनिया में जया भादुड़ी बच्चन किस खेत की मूली थीं ?

बॉलीवुड गटर नहीं सड़ांध नाला है. इसे समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है. 1914-15 में बॉलीवुड में एक इंडो – कनाडियन पोर्नकार का प्रवेश होता हैं. लक्ष्य स्पष्ट था – भारत के युवाओं को पोर्न फिल्मों की ओर धकेलना. उनका नैतिक पतन करा देना. बॉलीवुड के किसी दिग्गज अभिनेता ने इसका विरोध नहीं किया था. उलटे उस बदचलन को कई मूवी में पोर्न एक्टिंग करने का मौका इसी बॉलीवुड ने दिया था.

जहाँ रिश्ते पानी के बुलबुले हों. शारीरिक सम्बन्ध के आगे न कोई किसी की बेटी है न ही कोई किसी की बहन. कौन किसकी बेटी है, कौन किसका बेटा है, डर से कोई डी एन ए टेस्ट भी नहीं करता. जहाँ पैसे और नाम के लिए सब कुछ खोल देना सहजता है. उसे क्या कहें ; “गटर” ? नहीं; वह तो सड़ांध नाला से भी गया बिता है.

  • साभार, पल्लव टाइम्स

 

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