ध्रुवास्त्र ; युद्धक से सजी सेना ; उलटे पाँव भागा चाइना

भारतीय सेना को यदि चौतरफा छूट दे दी जाये तो निश्चित रूप से किसी भी देश की सेना से निपटने में सक्षम है. इसका सबसे बड़ा कारण भारत की वर्ण व्यवस्था है. विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं है जिसके पास अलग – अलग कर्मों के लिए सदियों से वर्ण व्यवस्था रही हो. इसमें भी भारत की 35-36 संस्कृतियों में अलग – अलग वर्ण व्यवस्था. गुजरात से लेकर असम तक और कन्याकुमारी से लेकर पंजाब तक. सभी प्रदेशों की वर्ण व्यवस्था और उसमें युद्ध के लिए विशेष जातियों की संस्कृति. इसलिए युद्ध के कितने प्रकार हो सकते हैं कोई देश चाह कर भी भारत से सम्पूर्ण युद्ध कला को सीख नहीं सकता.

कुल मिला कर बात अटकती है युद्ध सामग्री के ऊपर. आयुद्ध सामग्रियों का आधुनिकीकरण भारत कितना कर पाया है और कितना आयत किया है. इस विषय पर जैसे समाचार इन दिनों पढ़ने को मिल रहे है – मोदीजी की सरकार जिसमें केंद्रीय रक्षामंत्री एक राजपुत वर्ण से और वित्तमंत्रानी जो पिछले मंत्रिमंडल में केंद्रीय रक्षा मंत्री रह चुकी हैं. सेना की आवश्यकताओं को समझाने का पूरा – पूरा अनुभव वाली जोड़ी प्रयाप्त है. भारतीय सेना को आयुद्ध सामग्री उपलब्ध कराने के लिए. ऊपर से मोदीजी का व्यक्तित्व विश्वस्तर के नेता के रूप में उभरी है. जिसमें उनकी कड़ी मेहनत लगी हुई है.

आज चीन हिमालय की उत्तरी तराई का बर्फ सूंघ रहा है. यह सब ऐसे ही नहीं हुआ है. अत्याधुनिक तकनीकों से लैस पांच अत्याधुनिक राफेल विमान भारतीय वायुसेना में विधिवत शामिल हो चुके हैं. शीघ्र ही रूस से एस – 400 मिसाइल प्रणाली भी भारत को मिलने वाली है. भारत इजरायल से स्पाइक मिसाइलों के अलावा कुछ और अत्याधनिक मिसाइलें भी खरीद रहा है. ऐसे में भारतीय सेना की ताकत आने वाले दिनों में कई गुना बढ़ जाएगी और हमारी सेना इनके जरिये दुश्मन को आसानी से धूल चटाने में सफल हो सकेगी. सेना के तीनों अंगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए न केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस इत्यादि देशों के साथ अत्याधुनिक तकनीकों से लैस हथियारों के सौदे हो रहे हैं बल्कि भारत में भी ऐसे हथियारों को बनाने की दिशा में कार्य तेजी पर है.

इस विषय पर सामरिक मामलों के विश्लेषक योगेश गोयल लिखते हैं की चीन – पाकिस्तान जैसे धूर्त पड़ोसी देशों से लगातार मिल रही चुनौतियों के लिए भारत अपनी तीनों सेनाओं को मजबूत करने की दिशा में दिन – रात कार्य कर रहा है. पिछले दिनों हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भी भारत ने बहुत लंबी छलांग लगाई है और अब हमारे पास बगैर विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करने की क्षमता हो गई है.

पिछले दिनों रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा निर्मित एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ‘ध्रुवास्त्र’ मिसाइल का भी सफल परीक्षण किया गया. पलक झपकते ही दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त कर देने की विलक्षण क्षमता रखने वाली यह मिसाइल भी पूरी तरह स्वदेश निर्मित है. ‘ध्रुवास्त्र’ पलभर में ही दुश्मन के टैंकों के परखच्चे उड़ा सकती है. उड़ीसा के चांदीपुर स्थित समेकित परीक्षण केन्द्र से ध्रुवास्त्र के सीधा निशाना लगाते हुए तीन सफल परीक्षण किए गए थे और डायरेक्ट तथा टॉप मोड दोनों में सभी परीक्षण सफल रहे हैं. परीक्षण के दौरान मिसाइल ने अपने टारगेट पर बिल्कुल सटीक निशाना लगाया. जमीन से लांचर से दागकर एंटी टैंक गाइडेड इस मिसाइल के कई महत्वपूर्ण पैरामीटर की जांच की गई और मिसाइल हर कसौटी पर खरी उतरी है.

ध्रुवास्त्र को आसमान से सीधे दागकर दुश्मन के बंकर, बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों को पलभर में ही नष्ट किया जा सकता है. इसे हेलीकॉप्टर से लांच किया जा सकता है. ध्रुवास्त्र तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ किस्म की टैंक रोधी मिसाइल प्रणाली है, जिसे आधुनिक हल्के हेलीकॉप्टर पर स्थापित किया गया है.

स्वदेश निर्मित इस मिसाइल का नाम पहले ‘नाग’ था, जिसे अब बदलकर ध्रुवास्त्र कर दिया गया है. इसका इस्तेमाल भारतीय सेना के स्वदेश निर्मित अटैक हेलीकॉप्टर ‘ध्रुव’ के साथ किया जाएगा,  इसीलिए इसका नाम ‘ध्रुवास्त्र’ रखा गया है. भारतीय सेना के लिए ध्रुवास्त्र बहुत बड़ी उपलब्धि है. ध्रुवास्त्र चीन के टैंकों को पलभर में ही खाक में मिलाने में सक्षम है और एल.ए.सी पर तैनात चीन के हल्के टैंकों को तो खिलौनों की भांति नेस्तनाबूद कर देगी.

इसलिए हमें अपनी सेना की बढ़ती हुई शक्ति पर गर्व करना चाहिए. चीन और पाकिस्तान ने बहुत धौंस दिखाए हैं. अब हमारी बारी है. – वन्दे मातरम

  • साभार, पल्लव टाइम्स

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