सरकार वैक्सीन के पीछे क्यों है ?

चेन्नै. बिकाऊ मीडिया ने हवा बना कर रखी है की सभी देशों के लोगों को वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है. यह कहाँ तक सही है जानने के लिए सोशल मीडिया को खंघालने पर पता चलता है की ऐसा कुछ भी नहीं है. कम से कम भारत में तो बिलकुल नहीं है. यूरोप और अमेरिका के कई देशों के सोशल मीडिया में भी ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन भारत के बिकाऊ मीडिया में प्रतिदिन कोई ना कोई ऐसा प्रसंग रहता ही है की लोगों को वैक्सीन का इंतजार है. अर्थात बिकाऊ मीडिया जन मानस तैयार करने में लगा है की सभी को वैक्सीन की जरुरत है.

इधर इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक बलराम भार्गव का कहना है की हम अधिकाधिक प्रभाव वाले वैक्सीन का इंतजार नहीं कर सकते. जो वैक्सीन कम से कम 50 प्रतिशत लोगों पर कारगर हो जाये उसे मान्यता दे दी जाएगी. यानि 50 प्रतिशत सफलता के ट्रायल वाले वैक्सीन को भारत की सरकार भारत के लोगों पर लगवाना शुरू कर देगी. प्रश्न है की यह बयान बलराम भार्गव का निजी है या सरकार के संकेत हैं ?

यह निजी बयान हो, ऐसा नहीं दिखता है. क्योंकि ऐसे भी अलोपैथी ड्रग्स 40 प्रतिशत असरदार होने पर भी ड्रग्स का पंजीकरण कर दिया जाता है. बिकाऊ मीडिया वातावरण तैयार करता है और ड्रग्स माफिया उसे सहजता के साथ डॉक्टरों के साथ कमीशनखोरी के बल पर स्थापित कर देता है. यही कारण है की अलोपैथी ड्रग्स हजारों प्रतिशत के मुनाफे पर बिकता है.

बिकाऊ मीडिया ने आम धारणा बना दी है की वैक्सीन आते ही समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाएगी और जो वैक्सीन लगवा लेगा वह कोविड-19 के प्रकोप से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा. जबकि इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च स्वयं बोल रहा है की वे ज्यादा इंतजार नहीं करेंगे. केवल 50 प्रतिशत प्रभावी वैक्सीन भी हो तो उसे मान्यता दे दी जाएगी और आम जन को लगने शुरू हो जायेंगे. साथ ही सेंट्रल ड्रग एंड स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी 50 फीसदी से अधिक प्रभाव वाली वैक्सीन को मान्यता देने की बात कह डाली है.

डॉ. भार्गव कहते हैं की 100 प्रतिशत प्रभाव वाली वैक्सीन की बात सोचना ठीक नहीं होगा क्योंकि श्वास संबंधी रोगों के मामले में अभी तक कोई भी पूर्ण प्रभावी वैक्सीन नहीं बन सकी है. वैक्सीन को अपनाए जाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिन तीन शर्तों का जिक्र किया है ये तीन शर्तें इस प्रकार हैं 1) वैक्सनी पूरी तरह सुरक्षित हो, 2) कोरोना वायरस के खिलाफ वह शरीर को इम्युनिटी देती हो, 3) वह आधे से ज्यादा मामलों में प्रभावी हो.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रथम बिंदु पर बात करें तो केमिकल (एंटी बायोटिक) से बना हुआ कोई भी वैक्सीन 100 प्रतिशत सुरक्षित कैसे हो सकता है ? वह मनुष्य के शरीर की प्रकृति के विरुद्ध होने से कुछ ना कुछ मात्र में और कभी न कभी अपना दुष्परिणाम देगा ही. इसे कैसे रोका जा सकता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वितीय बिंदु पर बात करें तो वह मनुष्य शरीर को इम्युनिटी प्रदान करने वाला हो. यदि वैक्सीन के गुणों में 33 प्रतिशत इम्युनिटी प्रदान करने की ही बात है तो भारत के भूगोल में फल, सब्जियां, मसाले और अनाजों की बहुत बड़ी श्रंखला है जो अद्भूत इम्युनिटी प्रदान करती है. फिर वैक्सीन ही क्यों ?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तृतीय बिंदु पर बात करें तो मात्र 50 प्रतिशत प्रभावी हो तो भी चलेगा. यहाँ पर सरकार को ज्ञात होना चाहिए की कोविड-19 पर अलोपैथी के अलावा जिन – जिन भारतीय थेरेपियों ने काम किया है उनमें कई में तो शत – प्रतिशत परिणाम मिले हैं. जैसे आयुर्वेद, पंचगव्य और सिद्धा, होमिओपैथी में भी अच्छे परिणाम मिले हैं. फिर अलोपैथी पर ही सरकार का जोर क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वयं मानता है की जिन वैक्सीनों को पिछली कई महामारियों में प्रयोग किया गया उनमें कोई भी शत – प्रतिशत प्रभाव वाली नहीं थी. दुनिया की पहली एंटीबायोटिक वैक्सीन एडवर्ड जेनर ने बनाई थी जो चेचक की वैक्सीन थी. वह वैक्सीन भी शत – प्रतिशत सफल वैक्सीन नहीं थी. इसी तरह प्लेग के कारण पूरे भारत में लाखों जानें गयी थी. तब वाल्डेमर हाफकिन ने एक वैक्सीन तैयार की थी. उस वैक्सीन का प्रभाव भी 50 प्रतिशत से कम ही था.

ऐसे में आयुर्वेद, सिद्धा, पंचगव्य और होमिओपैथी में जो उपाय दिए जा रहे हैं उस पर सरकार विचार क्यों नहीं कर रही है. दिए गए सभी उपाय आयुष मंत्रालय ने किस दिन के लिए संजो कर रखे हैं? आयुष मंत्रालय को भेजे गए ज्यादातर विश्व स्वास्थ्य संगठन के सभी तीन बिन्दुओं पर खरे उतर सकते हैं. 1) 100 प्रतिशत सुरक्षित होने की पूरी संभावना है क्योंकि कोई केमिकल (एंटीबायोटिक) नहीं है. 2) मनुष्य शरीर को इम्युनिटी प्रदान करने वाला है इसमें कोई संदेह की बात नहीं है. जिनके लिस्ट पिछले लेख में दे चूका हूँ. 3) सभी 50 प्रतिशत से अधिक कारगर है. वर्तमान में पंचगव्य में लगभग शत-प्रतिशत और सिद्ध चिकित्सा एवं आयुर्वेद में भी अच्छे परिणाम मिले हैं. फिर केवल अलोपैथी के पीछे सरकारें क्यों है? कारण स्पष्ट है – भ्रष्टाचार के जिस दलदल में अलोपैथी सांसें ले रहा है उसी में सरकारें और उनके आला – अधिकारी भी साँस लेना चाहते हैं.

  •  साभार पल्लव टाइम्स

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