कृषि और गाय व्यवसाय बने
कोई भी व्यापारी अपने व्यापार में नुकसान नहीं देखना चाहता. जैसे ही लगातार किसी भी प्रकार के व्यवसाय में हानी होती है तो वह तुरंत अपना व्यवसाय बदल देता है अथवा व्यवसाय की प्रक्रिया को बदल देता है. लेकिन यहीं पर किसानी कुछ ऐसा है की न ही यह पूरी तरह से सेवा है और न ही व्यवसाय. किसानों के ग्राहक किसानों को व्यवसायी मानते हैं तो सरकार सेवा भावी. इन्ही दोनों चक्कियों के बीच पिस रहा था किसान.
यदि सरकार किसानी को सेवा का मार्ग बना देती है तो जिस प्रकार से मंदिरों का संभाल देश में होता है वैसे ही किसानी को भी करनी पड़ेगी. यदि व्यापार बनाती है तो जैसे व्यापार चलता है वैसे ही चलाना पड़ेगा. व्यापार में उत्पादक यदि बिचौलिया चाहे तो रखे अथवा नहीं चाहे तो उसकी मर्जी. उत्पादक चाहे तो अपने उत्पादन का खुद ही बाजार कर ले. सरकार किसानी को यदि इसी रेल पर चलाने के लिए कोई कानून बना रही है तो इसमें बुराई क्या है? जो विपक्षी अपनी छाती पीट रहे हैं. जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी कृषि देखी नहीं. इस सन्दर्भ में एक घटना है जो बढ़िया चुटकुला बन गया है.
एक बार अपने देश का पप्पु किसानों के बीच भाषण देने गया. किसानों ने रोना रोया की इस वर्ष बाढ़ में उनके चना का फसल तो बहा ही. साथ में वे भी बह गए. इस पर पप्पु ने पलटा मारा और बोल बैठा – “फिर तुम लोग जान बचाने के लिए चने के पेड़ पर चढ़ क्यों नहीं गए?” ऐसे – ऐसे लोग इस देश में सांसद और विधायक बनते हों तो कैसे किसानों के दर्द को समझा जा सकता है? ऐसे लोग किसानी को कैसे व्यवसाय बनते हुए देख सकते हैं? सारी जिंदगी तो बिचौलियापन में बीत गया. दलाली और ब्रोकरी में बीत गया, फिर परिश्रम से कमाना कहाँ से आएगा?
यह 70 वर्षों से मांग रही है की किसानों को उनके उत्पाद का मूल्य स्वयं तय करने का अधिकार होना चाहिए. उधर मिट्टी पर पाँव नहीं रखने वाले पत्रकार भी यही राग अलाप रहे हैं की इस नए विधेयक से किसान गुलाम हो जायेगा. दिल्ली के मिडिया गलियारों में बैठ कर कोरी कहानी गढ़ने वाले पत्रकार, जिन्हें यह भी पता नहीं की किसान किसके लिए जीता है? ऐसे पत्रकारों को तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए. समय पर सोशल मिडिया नहीं आया होता तो ऐसे पत्रकार तो कब का देश बेच कर खा गए होते.
प्रश्न उठता है की मंदी के बिचौलिए गए तेल लेने, तो हम और आप करोगे क्या ? उपाय सरल है – अब उपभोगताओं को सीधा किसानों के संपर्क में आ जाना चाहिए. गाँव जाकर किसानों से संपर्क बढाइये और ले आइये खेती से उत्पादित अनाज, फल, सब्जियां और जो कुछ किसान उगता है. नहीं तो बड़े – बड़े माळवाले बिचौलिए बन बैठेंगे. वे किसानों से सीधा माल खरीदेंगे और आपको फिर उसी दाम में बेचेंगे. हाँ इसमें किसानों को लाभ मिलाने वाला है. किसान अपनी मर्जी के दाम पर माळ वालों को अपना सामान उसकी गुणवत्ता के आधार पर बेच सकता है. जैविक है तो जैविक के दाम में अथवा बाजार के भाव में.
सरकार को ऐसे ही गाय के साथ भी करनी चाहिए. डेयरी वाले किसानों से अपनी मर्जी से दूध का भाव तय करते हैं. यही कारण है की किसान को गाय रखने से कोई लाभ नहीं मिलाता है. उलटे किसानों को दूध बढ़ाने के चक्कर में कई उलटे – सीधे काम करने पड़ते हैं. अंतत: उससे हम और आप ही प्रभावित होते हैं. यदि गौपालक अपनी गौ के दूध का भाव स्वयं तय करने लग जाये तो उसे भी लाभ मिलेगा और हम – आपको भी अच्छा दूध मिलेगा.
अब किसानों को अपना ग्राहक लिंक बनाना चाहिए. अपने उत्पादन को अपने खेत पर बेचने का जुगाड़. इससे माळ वालों की भी दाल नहीं गलेगी. इसके कितने लाभ हैं – प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या ? जब लॉकडाउन चरम पर था. जहाँ – तहाँ सब्जियां बेचीं जा रही थी. बाहर से सब्जी की आवक लगभग बंद थी. सब्जियां किसानों के खेत से सीधा स्थानीय बाजार में आ रही थी. सब्जियों के भाव चवन्नी होते हम सभी ने अभी – अभी देखे हैं. ताज़ी सब्जियां अपने बजट के भाव में. कारण बिचौलियों की छुट्टी.
तो देर किस बात की. सरकार के इस निर्णय का समर्थन कीजिये और यदि आप किसान हैं तो ग्राहक लिंक बनाइये. उपभोगता हैं तो सीधा किसानों के संपर्क में आइये. तभी मिलेगी गुणवत्ता वाली वस्तुएं. साथ में रसायन मुक्त खाद्य वस्तुओं से स्वास्थ्य जीवन.