दले की राजनीति कैसे की जाती है और इस तरह की राजनीति का स्तर कितना नीचे गिर सकता है‚ इसका अंदाजा फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ बीएमसी की ओर से की गई कार्रवाई से लगाया जा सकता है। अगर कोई यह कहे कि कंगना के दफ्तर में की गई तोड़फोड़ से शिवसेना का कोई लेना नहीं है‚ जैसा कि शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत भी कह रहे हैं‚ तो यह बात शायद ही किसी के गले उतरे क्योंकि एक ओर जहां महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी सरकार का नेतृत्व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कर रहे हैं‚ तो वहीं दूसरी ओर बृहन्मुंबई महानगर पालिका यानी बीएमसी में भी शिवसेना का ही राज है। जाहिर है कि ऐसे में अगर शिवसेना इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ना भी चाहे‚ तो इससे बच नहीं सकती है। लेकिन पूरे मामले में जिस तरह शिवसेना के नेता कंगना रनौत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं‚ उससे कम से कम एक बात तो साफ है कि सत्ता के लिए शिवसेना और उसके मुखिया उद्धव ठाकरे तमाम सिद्धांतों और उसूलों को तिलांजलि दे सकते हैं। ॥

पहले तो उद्धव ने सत्ता की लालच में बीजेपी जैसे बीस साल पुराने सहयोगी का साथ छोड़ दिया और उस पार्टी से हाथ मिला लिया जिसके विरोध के नाम पर ही इस पार्टी की राजनीति चलती थी। और अब उन्होंने फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत‚ जो कि एक महिला भी हैं‚ के खिलाफ अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। कंगना के साथ अब तक जो बर्ताव किया गया‚ वो कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। चाहे वह कंगना के खिलाफ शिवसेना नेताओं की बयानबाजी हो‚ या फिर उनके दफ्तर में बीएमसी की ओर से की गई तोड़फोड़ की कार्रवाई। शिवसेना का इतने भर से मन नहीं भरा। पार्टी के आईटी सेल की ओर से कंगना रनौत के खिलाफ ठाणे के श्रीनगर पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज कराई गई है‚ जिसमें मुंबई की तुलना पीओके से करने के लिए उनके खिलाफ ‘राजद्रोह’ के आरोप के तहत केस दर्ज करने की मांग की गई है। हद तो तब हो गई‚ जब उद्धव ठाकरे के खिलाफ कथित ‘गलत भाषा’ का इस्तेमाल करने के लिए कंगना के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। लेकिन कंगना को ‘हरामखोर’ कहने को लेकर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ। दिलचस्प बात तो यह है कि इस पूरे मामले पर जब संजय राउत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने तपाक से कहा कि मुंबई में नॉटी को ‘हरामखोर’ और ‘बेईमान’ कहा जाता है यानी संजय राउत के शब्दों में कहा जाए तो उन्होंने कंगना को नॉटी कहा। तो क्या अब किसी भी शब्द का इस्तेमाल महाराष्ट्र की भाषा के लिहाज से किया जाएगा क्योंकि संजय राउत ने कंगना के खिलाफ जिस हरामखोर शब्द का इस्तेमाल किया‚ वो देश के दूसरे हिस्से में एक गाली के तौर पर प्रयोग किया जाता है। दुनिया की शायद ही ऐसी कोई डिक्शनरी हो‚ जिसमें नॉटी का मतलब ‘हरामखोर’ या ‘बेईमान’ हो। ऐसे में तो राउत के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन नहीं‚ क्योंकि महाराष्ट्र के माई–बाप तो शिवसेना और उसके नेता हैं‚ जिनके हिसाब से सही और गलत का निर्धारण किया जाएगा यानी खाता न बही‚ शिवसेना जो कहे‚ वो ही सही। ॥

संजय राउत भले ही कह रहे हों कि कंगना रनौत एपिसोड खत्म हो चुका है‚ लेकिन दूसरी ओर वो सामना में एक लेख के जरिए कंगना के खिलाफ अपनी भड़ास भी निकाल रहे हैं। असल में कंगना के दफ्तर में बीएमसी की ओर से की गई तोड़फोड़ के अगले दिन शिवसेना के मुखपत्र में ‘सामना’ में ‘उखाड़ दिया’ शीर्षक से लेख लिखा गया। साफ है कि शिवसेना नेता एक ओर जहां बीएमसी की कार्रवाई को सही ठहरा रहे हैं‚ तो वहीं दूसरी ओर इसे कंगना को उस बयान का जवाब माना जा रहा है‚ जिसमें उन्होंने कहा था‚ ‘महाराष्ट्र किसी के बाप का नहीं है‚ महाराष्ट्र उसी का है‚ जिसने मराठी गौरव को प्रतिष्ठित किया है। मैं डंके की चोट पे कहती हूं‚ हां मैं मराठा हूं‚ उखाड़ो मेरा क्या उखाड़ोगेॽ’ यहां यह भी बताना जरूरी है कि कंगना ने यह बयान यूं ही नहीं दिया था‚ इससे पहले संजय राउत ने कंगना के मुंबई पहुंचने पर उसे देख लेने की धमकी दी थी। शिवसेना ने भले ही कंगना को डराने की पूरी कोशिश की‚ लेकिन वो शिवसेना के आगे हथियार डालने को कतई तैयार नहीं दिख रहीं। ॥

हैरानी की बात यह है कि इस पूरे एपिसोड पर ‘असहिष्णु गैंग’ पूरी तरह से चुप्पी साधे बैठा है। अगर आमिर खान कह दें कि उनकी पत्नी को भारत में डर लगता है‚ तब तो यह असहिष्णु गैंग सिर पर आसमान उठा लेता है‚ लेकिन जब आमिर खान भारत विरोधी तुर्की के राष्ट्रपति के घर चाय की चुस्की लेते हैं‚ या कंगना को डराने की कोशिश की जाती है‚ तो फिर इन्हें सांप सूंघ जाता है। अगर किसी भी बीजेपी शासित राज्य में किसी महिला के खिलाफ अपराध हो जाए‚ तो तमाम विपक्षी दल एक सुर से हाय तौबा मचाने लगते हैं‚ लेकिन यहां चिर शांति है। सत्ता खोने के डर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी इस पर कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। सोनिया गांधी की इस चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कंगना रनौत भी उन्हें खरी–खोटी सुनाने से नहीं चूकीं। ॥

असल में शिवसेना और कंगना रनौत के बीच अदावत का यह दौर अचानक शुरू नहीं हुआ है। आरोप–प्रत्यारोप का दौर उसी दिन शुरू हो गया था‚ जब बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत की खबर सामने आई थी। कंगना तो शुरू से ही सुशांत की मौत को खुदकुशी मानने से इनकार कर रही हैं। कंगना समेत बॉलीवुड का एक तबका सुशांत की मौत की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग करने लगा। कंगना शुरु आत से जिस तरह इशारों–इशारों में सीएम उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे पर सवाल उठाती रहीं‚ उसकी यही परिणति होनी थी। मुंबई पुलिस की जांच पर लगातार उठते सवाल और सुशांत मौत मामले की सीबीआई जांच को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से शिवसेना का तिलमिलाना लाजिमी था। ॥

हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से स्टे लगाए जाने के बाद कंगना के दफ्तर और घर में बीएमसी की किसी भी कार्रवाई पर रोक तो लग गई है‚ लेकिन सत्ता के लिए शिवसेना इस स्तर तक नीचे गिर जाएगी‚ इसका इल्म किसी को नहीं था। अगर उद्धव के पिता बाला साहब ठाकरे होते तो शायद ही ऐसा करते। वो आखिरी तक कांग्रेस विरोध के रुûख पर न सिर्फ कायम रहे‚ बल्कि अपने उसूलों से भी कभी समझौता नहीं किया। मगर उनके जाने के महज कुछ सालों के भीतर ही उनके लाल ने कमाल कर दिया और मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने विचारधारा का ही परित्याग कर दिया। उधर‚ कंगना के खिलाफ शिवसेना जिस तरह बदले की राजनीति कर रही है और कंगना रनौत को जिस तरह महाराष्ट्र समेत पूरे देश से समर्थन मिल रहा है‚ उससे आने वाले दिनों में शिवसेना को इसका खामियाजा यकीनन भुगतना पड़ सकता है॥। (लेखक भाजपा से संबद्ध)॥ राधेश्याम सिंह यादव॥

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