कोरोना वैक्सिन की अनिवार्यता नहीं

पञ्चगव्य डॉ असो. ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र

चेन्नै. कोरोना एक महामारी है. जो प्रकृति प्रदत हो या चीन के द्वारा फैलाया गया हो. विश्व के 100 वर्षों का इतिहास गवाह है की कोई भी वायरस समय के साथ स्वयं नष्ट हो जाता है. जब तक इसके टीके बनते और बाजार में आते हैं तब तक उस वायरस का सफाया प्रकृति स्वयं कर देती है. जैसा की कोरोना का हो रहा है.

इसके इतिहास को देखें तो 1915 में इंसेफेलाइटिस नाम का वायरस आया. 1926 तक स्वयं प्रकृति के समाप्त कर दिया. इसका प्रभाव भारत में नहीं हुआ था.

1918 में स्पेनिश फ्लू आया. 1920 तक यह भी समाप्त हो गया. इसका भी भारत के साथ कोई सम्बन्ध नहीं था. समय के साथ प्रकृति ने इसे भी समाप्त कर दिया.

1961 में हैजा महामारी फैला. इसकी उत्पत्ति भी भारत में नहीं हुआ. लेकिन भारत प्रभावित रहा. 1975 तक यह भी समाप्त हो गया.

1968 में इंफ्लुएंजा नाम का महामारी उत्पन्न हुआ. इसकी उत्पत्ति स्थल हांगकांग है. वहीँ से भारत पहुंचा. यह एक वर्ष अर्थात 69 में ही समाप्त हो गया.

1974 में चेचक आया. यह भी भारत से उत्पन्न नहीं हुआ. लेकिन भारत सबसे ज्यादा प्रभावित रहा. मात्र 3 वर्षों में अर्थात 1977 में इसका भी सफाया हो गया.

1994 में प्लेग आया. यह भारत के सूरत से फैला, ऐसा कहा जाता है. लेकिन यह भी एक वर्ष से ज्यादा नहीं टिक पाया.

2002 में सार्स आया. 2004 तक यह भी साफ हो गया. इसकी उत्पत्ति भारत में नहीं हुई. भारत में इसका प्रभाव नहीं के बराबर रहा.

2006 में डेंगू / चिकनगुनिया फैला. उत्तर भारत आंशिक रूप से प्रभावित रहा. समय के साथ यह भी समाप्त हुआ. मच्छरों को इस संक्रमण का वाहक मन गया.

2009 में हेपेटाइटिस बी भारत के गुजरात में हुआ. इसका संक्रमण भी समय के साथ स्वयं समाप्त हुआ. एलोपैथी में सिरिंज के गलत उपयोग को जिम्मेदार माना जाता है.

2014 में स्वाइन फ्लु आया. 2015 तक यह भी समाप्त हो गया. इसका मुख्य केंद्र उत्तर भारत रहा.

2017 में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम आया. इसकी उत्पत्ति जापान से हुई. ऐसा माना जाता है. सिमित क्षेत्र और एक वर्ष के अन्दर ही दम तोड़ दिया.

2018 में निपाह वायरस आया. उत्पत्ति चमगादड़ मने जाते हैं. भारत में सबसे ज्यादा प्रभाव केरल में रहा. कुछ ही महीनों में निपाह वायरस ने दम तोड़ दिया.

इस वर्ष कोरोना महामारी और उसका प्रकोप

2019 कोरोना आया. उत्पत्ति चीन माना जाता है. अभी तक कहीं – कहीं असर दिखलाई दे रहा है. यह इतना कमजोर वायरस है की 1) गरम पानी, 2) तुलसी का काढ़ा, 3) गिलोय का काढ़ा, 4) कालमेघ का काढ़ा 5) गोमूत्र आदि से भाग रहा है.

ऊपर के उदहारण स्पष्ट करते हैं की इस प्रकार के वायरस समय के साथ स्वयं समाप्त हो जाता है. वैक्सिन बनने और उसका लोगों तक पहुँचाने में जितना समय लगता है उससे पहले वह स्वयं समाप्त हो जाता है. वायरसों का यही इतिहास रहा है. ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है.

कोरोना वायरस से बचने के कुछ ठोस उपाय भारत में

मनुष्य शरीर में वायरस के प्रभावी होने के कारन : प्रतिरोधक क्षमता की कमी. इसलिए लोगों को शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भारत में कई व्यवस्था है. जैसे

1) प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने वाले पञ्चगव्य – गोमूत्र, गोमय और छीर.

2) प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने वाले सब्जियां – करैला, सहजन, परवल.

3) प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने वाले फल – कटहल, नारियल, बेल, अनार.

4) प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने वाले वनस्पति – तुलसी, गिलोय, कालमेघ.

5) प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने वाले अनाज – रागी, लाल चावल, चना, बाजरी, जौ.

“कोरोना वैक्सिन नहीं चाहिए” के सम्बन्ध में कुछ ठोस तथ्य

  • प्राप्त जानकारी के अनुसार कोरोना वैक्सिन बनाने में गर्भस्त गाय के बछड़े को मार कर उसके हृदय से निकाले गए रस का उपयोग होने जा रहा है.
  • कोरोना वैक्सिन बनाने में जिन केमिकलों का उपयोग होने जा रहा है, इसके समीकरण का 100 प्रतिशत खुलासा नहीं किये जाने का प्रावधान.
  • आयुर्वेद के अनुसार शरीर के नसों में किसी भी प्रकार के केमिकल का सीधा डालना अनुचित.
  • हमारा शरीर पूरी तरह से प्राकृतिक रसों से संचालित है. इसमें अ प्राकृतिक (एंटी बायोटिक) का डालना अनुचित.
  • आज हजारों उदाहरण खड़े है जो साबित करते हैं की जिन बच्चों को पोलियो के सभी टीके लगे हैं उन्हें भी पोलियो संक्रमण हुआ है. ऐसे एक – दो नहीं लाखों की संख्या में उदहारण प्रस्तुत किये जा सकते हैं.
  • यह पोलियो का टीका भी उसी बिल-गेट्स की कम्पनी ने बनाई थी जो आज कोरोना का वैक्सिन बनाने जा रही है. अत: इसकी विशुद्धता पर प्रश्न चिन्ह और इसमें कुछ चालबाजी हो, इंकार नहीं किया जा सकता है.

अत: प्रधान मंत्री जी / केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी से निवेदन है की भारत के संविधान में भारत के लोगों के लिए दिए गए मूल अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में गहरे से विचार करते हुए कोरोना वैक्सिन की अनिवार्यता पर पुन: विचार किया जाये.

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