कई प्रश्न हैं. कोरोना प्राकृतिक विपदा है ? या चीन द्वारा फैलाया गया है ? या चीन के माध्यम से फैलाया गया है ? प्रश्न अभी तक शास्वत है. लेकिन कोरोना से जो कुछ अच्छा हुआ है इसके लिए किसे धन्यवाद देंगे ?

कोरोना ; फिर कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन ; प्रकृति अपनी प्रकृति की ओर मूड गई. इसके कई उदहारण मिलते हैं. ऐसा ही एक उदहारण – दक्षिण भारत के त्रिवेणी संगम का है. भारत में दो त्रिवेणी संगम थे. 1) गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम. अर्थात प्रयागराज. 2) पालर, चेइयार और वेगवती. अर्थात पलियशिवराम. प्रयागराज तो कब का भ्रष्ट – नष्ट हुआ. सो सरस्वती धरती में समाई. केवल नाम रहा है त्रिवेणी संगम. यहीं पर ; दक्षिण भारत का त्रिवेणी संगम भी सूख गया था. विगत 10 वर्षों से तपते हुए रेत में बदल गए थे. लेकिन इस वर्ष कार्तिक मास शुरू होते ही इस वर्ष दक्षिण भारत के त्रिवेणी संगम में तीनो नदियों में जलधार शुरू हो गया है. जल भी शुद्ध. इतना की देखते ही डुबकी लगाने का मन करता है.

जिन्हें त्रिवेणी का महत्त्व पता है उनके लिए सबसे ख़ुशी का यह अवसर है. तीन प्रकार के विद्युत उर्जाओं से श्रृष्टि संचालित है. इसलिए तीन प्रकार की उर्जाओं का एक स्थान पर मिलन को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं. 1) पांच प्रकार की मिट्टी का एक स्थान पर मिलन. 2) चार प्रकार के जल का एक स्थान पर मिलन. 3) तीन प्रकार की अग्नि का एक स्थान पर मिलन. 4) दो प्रकार के वायु का एक स्थान पर मिलन. और 5) कृत्रिम ध्वनि तरंगों से शून्य आकाश.

पुराणों की कथाओं में वर्णन के आधार पर – दक्षिण भारत के त्रिवेणी संगम को सभी ऋषियों ने जगत के कल्याण के लिए तपस्या स्थल के रूप में चुना. ऋषि आत्रेय से लेकर भारद्वाज तक. ऋषि कपिल से लेकर ऋषि अगस्त्य ने यहाँ पर मानव जीवन का एक अद्भूत सर्वेक्षण खड़ा किया था. जिसे नाड़ी ज्योतिष कहते हैं. करोड़ों लोगों के अंगूठे के चिन्ह को ताड के पत्तों कर इकठ्ठा कर उसका अध्ययन किया और अंगूठे के चिन्ह के आधार पर उस मनुष्य के जीवन दर्शन के विज्ञान को खड़ा किया. जिसके अंश आज भी नाड़ी ज्योतिष के नाम से जीवंत है.

ऐसे भी कार्तिक के महीने में जल बहाव वाले नदी में स्नान करने का अपना एक बड़ा महत्त्व है. इसके कुछ चिकित्सकिये महत्त्व हैं. आश्विन महीने तक वर्षा ऋतू का जल पहाड़ों और चारागाहों के जमे हुए पित्त (विकृत आग्नि) को लेकर नदियों के माध्यम से समुद्र में मिल जाता है. इसके बाद शुरू होता है पहाड़ों के जड़ से जल का रिसाव. जहाँ पर वनस्पतियों के जड़ें जमी हुई है. इसलिए कार्तिक के महीने का नदी का जल केवल शुद्ध ही नहीं होता बल्कि वह अपने में वनस्पतियों के सत्व को साथ ले कर रहता है. जिसमें स्नान करने से हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ उसे अवशोषित कर लेती हैं. उन सत्व गुणों से हमारा शरीर और मन प्राकृत हो जाता है.

कोरोना के कारण कारखाने बंद हैं. इसलिए नदियों का जल भी स्वच्छ है. अत: हमें प्रकृति के इस वरदान का उपयोग करना चाहिए. अर्थात दक्षिण भारत के त्रिवेणी संगम (पलियशिवरम) में डुबकी लगानी चाहिए. यह स्थान चेंगलपट्टू से कांचीपुरम मार्ग में 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. संगम के एक छोर पर भगवान नरसिम्हन का मंदिर है. दूसरी छोर पर श्री बालाजी का ऐतिहासिक मंदिर है. जो 7 वीं सदी का बना हुआ है. पहाड़ी के ऊपर पुराने शिवजी का मंदिर है. जिसका नवीनीकरण विगत 5 वर्ष पहले हुई है.

अत: कोरोना को धन्यवाद देते हुए नदियों में डुबकी लगाइए. फिर पता नहीं कब इतना बड़ा लॉकडाउन हो और नदियों में शुद्ध जल मिले.

 

  • साभार, पल्लव टाइम्स

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