निरोगी जीवन ; गेंहू छोड़ना ही पड़ेगा

चेन्नै. आज – काल सोशल मिडिया पर एक समाचर वायरल हो रहा है. जिसमें कहा गया है की निरोगी जीवन के लिए गेंहू छोड़ो. जिसमें अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. विलियम डेविस की चर्चा है. उन्होंने 2011 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है “गेंहू की तौंद”. मूल नाम ‘बेल्ली ऑफ़ व्हीट’.

यह पुस्तक अब फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है. पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है. कल यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आएगा. यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है.

पल्लव टाइम्स पिछले 10 वर्षों से इसी बात को लिखते आ रहा है की गेहूं भारत का मूल अनाज नहीं है. यह कभी पूर्वी एशिया से आया है. इसकी तासीर भारत की जलवायु से साथ सम नहीं है. इसलिए भारत में रहने वाले लोगों के यह हितकर नहीं है. मधुमेह और कब्जियत बीमारी के मूल में यही अनाज है.

चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह मक्का, बाजरा, जौ, चना, ज्वार, कोदरा. रागी, सावां, कांगनी आदि ही खाना चाहिये. गेंहू नहीं.  जबकि यहां भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेंहू खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं.

गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है. यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांता बाबर के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था. उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि. हमारे मांगलिक कार्यों में भी यज्ञवेदी या मन्दिरों में जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढाए जाते रहे हैं. प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है.

1975-80 तक आम भारतीय घरों में जौ की रोटी का प्रचलन था जो धीरे धीरे खतम हो गया. 1980 के पहले आम तौर पर घरों में मेहमान आने या दामाद के आने पर ही गेंहू की रोटी बनती थी और उस पर घी लगाया जाता था. जौ ही मुख्य अनाज था. हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लम्बी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं. वे सब मोटा अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं. एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी. आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं. फ़िर भी हर दूसरा भारतीय जो 30 की आयु का है अपनी तौंद घटाना चाहता है.

गेंहू के आंटे की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाये हुये है क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से सिक जाती है. लेकिन यह उतनी आसानी से पचता नहीं है. समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे आदि को रखना चाहिये और गेंहू को अधिक से अधिक 15-20 प्रतिशत. हाल ही में कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में लीला है उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के पास है. फिर तो गेहूं को त्यागना ही पड़ेगा.

अन्त में एक बात और भारत के फिटनेस आइकन 54 वर्षीय टॉल डार्क हेंडसम मिलिंद सोमन गेंहू नहीं खाते हैं. गेंहूँ से मात्र 40 बरसों में यह हाल हो गया है. अब भी नहीं चेते तो अगली पीढ़ी के बच्चे डायबिटिज लेकर ही पैदा होंगे.

 

  • साभार, पल्लव टाइम्स

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