चीन को राखी पर पटखनी ; बढे चलो स्वदेशी भारत

चीनी सामानों के प्रचलन को समाप्त करने के साथ ही स्वदेशी सामानों की गुणवत्ता और मूल्य को लेकर बड़े सवाल खड़े होते रहे हैं. इन सवालों की सीमा तब तक तय नहीं हो सकती जब तक हम भी वैश्विक स्तर पर सामानों का उत्पादन शुरू नहीं करेंगे. यही चुनौती छोटे उद्योगों के साथ भी है. जिसमें सबसे बड़ी मुश्किल यही है की छोटे उद्योगों को सही समय पर पैसा और संसाधन नहीं मिल पाता है. कुछ बानगियाँ – 1) उद्योग के लिए बिजली चाहिए तो बिजली विभाग आपके 5 जोड़ी जूते तुड़वा देगा. 2) प्रदूषण नियंत्रण विभाग आपसे 100 चक्कर लगवाएगा तब जा कर बताएगा की आपको कौन – कौन से पेपर जमा करने हैं. 3) पंचायत के गुंडे और ठेकेदार कारखाना शुरू होने से पहले अपने आदमियों को नौकरी दिलवाने के लिए धरने पर बैठने की धमकी देना शुरू कर देंगे. कम से कम 25 अड़चन होंगे. तब तक कर्ज के पैसे सर चढ़ कर बोलने लग जायेगा.

इन्हें स्टार्टअप के साथ जोड़कर बदलाव करने की जरुरत है. इसके लिए बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत पड़ेगी. यह लिस्ट लंबी है‚ लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं जिसे प्राप्त करना मुश्किल हो. चीन को सफलता इसी राह पर चलकर मिली थी.

बातचीत की टेबल पर तो चीनी पक्ष सुलह की बात करता है‚ लेकिन सरहद पर उसके सैनिक वार्ता के उलट बर्ताव कर रहे हैं. इससे लगता है कि संयमित संवाद की भारत की कोशिशें या तो चीन को समझ नहीं आ रही हैं या फिर वो किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने से पहले भारत की ताकत को तौल रहा था. चीन के इस मंसूबे का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी कर चुका है. और अब तो राफेल भी आ चूका है.

चीन पैसों की भाषा समझता है और उससे निपटना है तो उसकी अर्थव्यवस्था पर हमला बोलना ही पड़ेगा. इस बार राखी के त्यौहार में उसे अच्छा झटका लगा है. सरकार की ओर से चीनी सामान के बॉयकॉट करने का कोई आधिकारिक ऐलान तो अब तक नहीं हुआ है‚ लेकिन राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों ने चीनी कंपनियों के साथ चल रहे करारों पर सख्ती शुरू कर दी है. रेलवे ने चीन के साथ चार साल पुराना सिग्नल कॉन्ट्रेक्ट रद्द कर दिया. भारत की जनता के लिए यह एक उदहारण काफी है.

भारतीय उपभोक्ताओं से मोटी कमाई करने वाली ई–कॉमर्स कंपनियों को अपने उत्पादों पर उसे बनाने वाले देश का नाम डिस्प्ले करने को लेकर भी चीन ने उत्पादों पर मेड इन चाइना लिखना बंद कर दिया है. उपभोक्ताओं को झांसा देने के लिए वो अब इसकी जगह पीआरसी यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना लिख रहा है. एम आय सी लिख रहा है. अर्थात मेक इन चाइना.

भारत में चीन के खिलौने और सौर ऊर्जा के 90 फीसद बाजार‚ फॉमा और इलेक्ट्रॉनिक का 70 फीसद‚ टेलीकम्यूनिकेशन‚ टेलीविजन और ऑटो इंडस्ट्री का 25 फीसद‚ स्टील और न्यूक्लियर मशीनरी का 20 फीसद और ऑर्गेनिक केमिकल के 10 फीसद बाजार में हिस्सेदारी धीरे से टूटती दिखाई दे रही है. वर्ष 2019–20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा निवेश भारत में ही किया था.

चीन हमसे जितना सामान खरीदता है‚ उसका चार गुना से ज्यादा में हमें बेच देता है. इसलिए आयात – निर्यात के इसी खेल से निर्भरता के मामले में चीन हम पर भारी पड़ जाता है. चीन अपने कुल निर्यात का केवल तीन फीसद ही भारत को निर्यात करता है. इसीलिए केवल चीनी सामानों के बहिष्कार से उसका उतना नुकसान नहीं होगा. इसलिए आत्मनिर्भरता की ओर उठाया गया भारत का कदम भारत द्विपक्षीय व्यापार में चीन के कद को बौना कर सकता है.

मेक इन इंडिया के अंतर्गत तैयार हो रहे सामानों की गुणवत्ता सवालों में रहती है. इसे दूर करने के लिए सुधार जरूरी है. यही चुनौती छोटे उद्योगों के साथ भी है. जिसे सुधार कर चीन के सामने उसी की भाषा में जवाब दिया जा सकता है.

बहुत अच्छा लगा की इस बार राखी के त्यौहार में भारत के लोगों ने चीन को बतला दिया की भारत में चाहो कितने भी गद्दार जीवित हों, मुट्ठी भर राष्ट्रभक्त चीन को सबक सीखा सकते हैं.

  • गो वंदे मातरम
  • साभार, पल्लव टाइम्स

सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ निरंजन कु वर्मा

Sevaratna Gavyasiddhachary
Dr. Niranjan K Verma

Advance Ayurvedik Therepist (TN Govt.), M.D.(panchgavya), M.D.(Cell Medicine), FRSH, FWSAM, Editor – Pallav Times.

 

 

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