“जय सियाराम” के साथ नींव ; मथुरा व काशी कब ?

चेन्नै. सदियों से चली आ रही हिन्दू दब्बूपन पर सहीवार, कोई पहली बार नहीं हुआ है. इससे पहले भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें लौह पुरुष कहा गया. उन्होंने सोमनाथ में भगवान शिव के प्रतिकात्मक शिवलिंग की स्थापना और एक भव्य मंदिर का पुन:निर्माण कराया था. जिसे मलेक्षों ने 17 बार लूटा और तोडा था. यह तो गुजरातियों का प्रताप ही था की 17 वीं बार भी सोमनाथ को खड़ा किया और वहीँ खड़ा किया. उनके इस कार्य को नमन है. उद्घाटन के लिए भारत के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने प्रोटोकॉल को तोड़ कर सोमनाथ गए. जबकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसका विरोध ही करते रहे. उस समय भी सांप्रदायिकता का राग अलापा जा रहा था. नेहरू का हिन्दू विरोधी होना यहीं स्पष्ट हो गया था.

कश्मीर के राज्यपाल श्री जगमोहनजी ने वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड बना कर ऐसा ही कार्य किया था. फिर आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीराम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रख कर कौन सा ऐसा कार्य कर दिया जिससे मुस्लिम तुष्टिकारकों को दिन में ही तारे दिखलाई देने लगे हैं. वे बार – बार कह रहे हैं की यह सब भारत के भविष्य को अंधकार में डुबो देगा. सत्य तो यह है की अभी तक कानून को अँधेरे में पढ़ा जा रहा था. अँधेरे में पढने वाला जो बके, वही सत्य. ये तीन हस्तियाँ 1) सरदार पटेल, 2) जगमोहन और 3) नरेन्द्र मोदी. ने संविधान को दीपक की रौशनी में पढ़ा. उसमें से समाधान निकाले और कर डाला.

इतना ही नहीं मथुरा और काशी पर मौजूद मस्जिदें भी दुनिया के हिंदू बाहुल्य देश की जनभावनाओं पर कलंक की तरह रहीं हैं. इसलिए आज वहां मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने पर संसार के सभी देशों के हिन्दुओं में हर्ष है. यह स्वाभाविक है. कुछ जयचंदों को यह पच नहीं रहा. इसलिए वे चिल्ला रहे हैं की धर्मनिरपेक्ष संविधान की शपथ खाने वाले प्रधानमंत्री ने मंदिर के भूमिपूजन में नहीं जाना चाहिए था. यह विषय केवल हिन्दू धर्म के साथ ही लगता है. ये जयचंद आरोप भी लगा रहे हैं की तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से मंदिर के पक्ष में निर्णय एक ‘सौदा’ के तहत हुआ‚ जिसमें गोगोई को राज्य सभा में भेज दिया गया.

मूर्खों ! कानून जनता के हित के लिए होते हैं‚ जनता कानून के लिए नहीं होती. मोदी जी ने बहुसंख्यक समाज की सदियों पुरानी पीड़ा को समझा और साम – दाम – दण्ड – भेद की नीति अपनाकर प्रबल इच्छाशक्ति का प्रमाण दिया‚ जिससे निश्चय ही हिंदू समाज अभिभूत है.

इसी दिन अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदीजी के भाषण में दो विशेष बात थीं. 1) उन्होंने बड़ी विनम्रता और दीनता के साथ उन सबका स्मरण किया‚ 500 जिन्होंने पिछले वर्षों में श्री राम मंदिर की मुक्ति के लिए कुछ भी योगदान किया है. 2) वे पूरी तरह राम भक्ति के रंग में रंगे हुए दिखे. वस्त्र से लेकर व्यवहार तक. उन्होंने भाजपा का राजनीतिक नारा ‘जय श्रीराम’ के स्थान पर ‘जय सियाराम’ का उदघोष किया. साथ ही उद्बोदन में भगवान श्री राम के जीवन‚ उनका आदर्श आदि पर ज्यादा ध्यान दिया.

जो कल तक विरोध कर रहे थे, अब बोल रहे हैं “सब के राम”. परन्तु बगल में छुरी अभी भी है. मौका मिलते ही जागते हुए हिन्दू पर वार करने में नहीं चुकाने वाले. इसलिए हे, भारत के हिन्दुओं ! उठो, जागो और अपने देवों को पहचानो. तुम किनके संतान हो ? धर्म की रक्षा के लिए तुमने सत्युग से ही अस्त्र धारण किये हो. ये अस्त्र केवल पूजा के लिए नहीं है. तलवार की धार चमकते रहना और धनुष की प्रत्यंचा चढ़ी रहना इसी में राष्ट्र और धर्म दोनों सुरक्षित है.

सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ निरंजन कु वर्मा

Sevaratna Gavyasiddhachary
Dr. Niranjan K Verma

Advance Ayurvedik Therepist (TN Govt.), M.D.(panchgavya), M.D.(Cell Medicine), FRSH, FWSAM, Editor – Pallav Times.

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