हिंदी ; भारतीय भाषाओँ की दुर्दशा

संघ लोक सेवा आयोग ; की परीक्षा में जो उतीर्ण होते हैं वे ही देश को चलाते हैं. यह कहना इसलिए भी सार्थक लगता है की इनके कन्धों पर ही देश का प्रशासनिक भार होता है. जिलाधिकारी से लेकर सारे अफसर इसे के बाद बनते हैं. इस परीक्षा को भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा हिंदी में भी देने का प्रावधान है. केन्द्रीय बजट में हिंदी भाषा के विकास के लिए प्रतिवर्ष अलग से बजट होता है. केन्द्रीय कार्यालयों में अलग से नौकरी का भी प्रावधान होता है. हिंदी के विकास की नियमित जाँच के लिए एक संसदीय समिति भी है.

फिर भी हिंदी की दुर्गति कैसी है, इसे देखते हैं. वर्ष 2019 में कुल 829 लोगों का चयन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा हुआ. जिसमें हिंदी भाषा में उतीर्ण होने वाला पहला विद्यार्थी 829 में 317 वें स्थान पर रहा. इससे हिंदी भाषा की वर्तमान स्थिति का पता चलता है. यानि इस बार हिंदी भाषा में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास होने वाला कोई भी अधिकारी ऊँचा स्थान प्राप्त नहीं कर सकता. अर्थात आईएएस, आईपीएस या आईएफएस जैसा पद नहीं मिल सकता. जो भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के क्रीम कैडर माने जाते हैं

दस साल पहले तक टॉप 10 में तीन-तीन, चार-चार हिन्दी माध्यम वाले विद्यार्थी आते रहे हैं. वर्ष 2010 तक हिन्दी माध्यम के लगभग 45 प्रतिशत प्री- क्वालीफाई करके मुख्य परीक्षा देते थे. जो अब यह आंकड़ा घट कर 10 से 12 प्रतिशत हो गया है. इसलिए सिविल सेवा की परीक्षाओं में हिन्दी के अभ्यार्थियों के निराशाजनक प्रदर्शन से देश स्तब्ध है. 10 वीं की हाईस्कूल और 12 वीं की इंटर की परीक्षाओं के हाल ही में आए परिणामों में विद्यार्थियों का हिन्दी का परिणाम भी अत्यंत ही निराशाजनक रहा है.

क्या हिन्दी के शिक्षक अपने अध्यापक धर्म का निर्वाह करने के लायक नहीं रह गए हैं? क्योंकि हिंदी में लाखों विद्यार्थियों का अनुतीर्ण होना कई सवाल खड़े कर रहा है. इसका असर दूर तक देखने में आ रहा है. जो बच्चे हिन्दी में इंटर और मैट्रिक में हिन्दी माध्यम से परीक्षा देते हैं, वे आगे चलकर हिन्दी में सिविल सेवा जैसी खास परीक्षा को पास कर पाने में असफल तो रहेंगे ही. साथ ही हिन्दी सेवी कहने वाले और हिन्दी के नाम पर रोटी कमाने वालों को इन सवालों के जवाब देने होंगे कि स्कूली स्तर से लेकर अति महत्वपूर्ण परीक्षाओं में हिन्दी के विद्यार्थी और अभ्यार्थी क्यों पिछड़ रहे हैं.

प्रश्न है कि आखिर कुछ वर्ष पहले तक जो हिंदी भाषी छात्र समूह बढ़िया परिणाम दे रहा था, वो एकाएक दुर्दशा का शिकार क्यों होने लगा? मुझे लगता है कि बात भाषा की नहीं, मानसिकता की भी है? हिन्दी में दिए गए उत्तरों की परीक्षकों की निगाह में भावना हीन हो गयी है. हिन्दी बोलने वालों का आत्मविश्वास तो वैसे ही हमेशा धरातल पर होता है. रही-सही कसर इंटरव्यू का अंगरेजियत पूरी कर देता है. अगर आप मुख्य परीक्षा को पास कर भी लेते हैं तो इंटरव्यू में पर्याप्त नंबर नहीं मिलते हैं. तो क्या मातृ भाषा में शिक्षा देने वाली बातें मात्र नाटक हैं?

सिविल सर्विस परीक्षा में हिन्दी वाले क्यों फिसड्डी साबित हो रहे हैं ? इस पर गहरे से विचार तो करना पड़ेगा. इस पर विशेषज्ञ मानते है की पठन सामग्री की कमी, अनुवादित पुस्तकों और प्रश्नपत्रों में गलत अनुवाद, परीक्षकों द्वारा हिन्दी माध्यम परिक्षार्थियों की उपेक्षा या जानबूझकर कम अंक देना, हिन्दी विद्यार्थियों और परीक्षकों की कमजोर शैक्षणिक पृष्ठभूमि, हिन्दी माध्यम परीक्षार्थियों का अंग्रेजी माध्यम के अनुपात में कम होना आदि कारन हो सकते हैं.

हमारे देश में कोचिंग संस्थानों की कोई कमी नहीं, लेकिन अच्छे संस्थानों की भारी कमी है. ये ही बच्चों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने का दावा करते हैं. देश के सभी शहरों में क्लर्क से लेकर सिविल सर्विस जैसी दूसरी बड़ी परीक्षाओं की इनमें तैयारी करवाई जाती है. हिन्दी में कोचिंग संस्थान तो कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं, लेकिन उनमें ठीक से पढ़ाने वालों की बहुत कमी है. आपको पढ़ाने वाला ही कमजोर होगा तो आप बेहतर परिणाम की उम्मीद कैसे करेंगे ? साथ ही वे विद्यार्थियों को स्तरीय पठन सामग्री उपलब्ध नहीं करवा पाते. इसलिए हिन्दी माध्यम के अभ्यार्थी मात खा रहे हैं. उन्हें इंटरनेट पर पठन सामग्री ढूंढने को कहा जाता है. वे सारी पठन सामग्रियां अंग्रेजी में ही होती हैं. अब हिंदी माध्यम के पढ़े बच्चे कैसे उस पठन सामग्री को समझेंगे ?

भारत देश की चाहत रही है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिल जाए और दूसरी तरफ हमारी शिखर नौकरशाही से ही हिन्दी गायब हो रही है. हिन्दी को विश्व मंच पर लाने की पहली सार्थक और ठोस पहल श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने की थी. पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975 में नागपुर में आयोजित हुआ था. जिसमें पारित प्रस्ताव में कहा गया था, संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाया जाए. इसके दो वर्ष बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी ने 4 अक्टूबर 1977 को जनता पार्टी की सरकार के विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में हिन्दी में जोरदार भाषण दिया था. उनसे पहले किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री ने तो क्या किसी प्रतिनिधि ने भी हिन्दी का प्रयोग संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर नहीं किया था.

यह मंथन का विषय है. हिंदी भाषी प्रदेशों के माता – पिता, वहां से हिंदी शिक्षक और सरकारों के लिए भी. यही हाल रहा तो हिंदी भी केवल संविधान में सिमट कर रह जायेगा. हिंदी के अलावा और भी भाषाएँ है जिनका विवरण कुछ इस प्रकार है –

  1. असमिया- असम, 2. बांग्ला – बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, असम तथा त्रिपुरा, 3. गुजराती – गुजरात, 4. हिन्दी – समूचे उत्तर-मध्य भारत सहित देश के लगभग हर भाग में. 5. कन्नड़ – कर्नाटक, 6. कश्मीरी – कश्मीर, कोंकणी – गोवा, दक्षिणी महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक, 8. मलयालम – केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक और तमिलनाडु, 9. मणिपुरी – मणिपुर, असम, मिज़ोरम, त्रिपुरा, बांग्लादेश और म्यांमार, 10. मराठी – मुख्यतः महाराष्ट्र में इसके अतिरिक्त यह गोवा, कर्नाटक, गुजरात, दमन और दीव और दादर और  नागर हवेली में बोली जाती है. 11. नेपाली – नेपाल की राष्ट्रभाषा है. भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों,भूटान, तिब्बत और म्यानमार में भी बोली जाती है. 12. उड़िया – मुख्य रूप से ओड़िशा में बोली जाती है. ओडिशा राज्य की राजभाषा भी है. 13 पंजाबी – पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पाकिस्तान, अमरीका, कनाडा और आस्ट्रेलिया में बोली जाती है. 14. संस्कृत – यह भाषा भारत के लगभग किसी भी हिस्से में नही बोली जाती है. लेकिन कर्नाटक राज्य के मत्तूर (माथुर) गाँव और केरल के कुछ गावं में यह भाषा अभी भी बोली जाती है. 15. सिंधी – मुख्य रूप से गुजरात और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है. 16. तमिल – तमिलनाडु तथा पुदुचेरी में यह राजभाषा है. श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, मॉरिशस, वियतनाम में बोली जाती है. 17. उर्दू – जम्मू & कश्मीर, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, बिहार, और उत्तर प्रदेश में बोली जाती है. 18. तेलुगु – आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों की मुख्यभाषा और राजभाषा है. इसके अलावा तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में भी बोली जाती है. 19. बोडो – बोड़ो या बड़ो एक तिब्बती-बर्मी भाषा है जिसे भारत के उत्तरपूर्व, नेपाल और बांग्लादेश मे रहने वाले बोडो लोग बोलते हैं. 20. डोगरी – जम्मू और कश्मीर प्रान्त में बोली जाने वाली एक भाषा है. डोगरी पंजाबी की उपबोली है. 21. मैथिली – मैथिली भारत के उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है. 22. संथाली – यह असम, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में बोली जाती है. बांग्लादेश, नेपाल, भूटान में भी बोली जाती है.
  • साभार, पल्लव टाइम्स

सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ निरंजन कु वर्मा

Sevaratna Gavyasiddhachary
Dr. Niranjan K Verma

Advance Ayurvedik Therepist (TN Govt.), M.D.(panchgavya), M.D.(Cell Medicine), FRSH, FWSAM, Editor – Pallav Times.

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