त्योहारें उबार देंगी, अर्थव्यवस्था को ?

चेन्नै. भारत में अब पर्वों का समय शुरू होने जा रहा है. यह जनवरी (पोंगल) तक चलेगा. इन्हीं चार-पांच महीनों में ज्यादातर व्यापारी पूरे साल का काम कर लेते हैं. इसी से भारतीय अर्थव्यवस्था में त्यौहारों के समय बाजार ऊंचाई पर रहता है. लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है. सोना और चांदी आयात अवरुद्ध होने से ऊंचाई पर है.

20 मार्च से लॉकडाउन चल रहा है. अभी भी कई राज्यों में बाजार पूरी तरह से नहीं खुला है. जहाँ खुला है, वहां डर बहुत अधिक है. लोग घरों से निकलना नहीं चाह रहे हैं. बड़ी कम्पनियाँ तो कर्मचारियों के वेतन आधे कर और बैंकों से लोन लेकर काम चला लिए. लेकिन स्थिति ख़राब हुई है मंझोले और छोटे उद्योग के लोगों को. जो कम कर्मचारियों के वेतन नहीं काट पाई और उन्हें बैंक लोन भी नहीं मिल रहा है. उनका पर्वों के समय उठ खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है. ऐसे में अमीर और अमीर व गरीब और गरीब हो रहे हैं. इसमें बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है. पर बैंक एम. एस. एम. ई. (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) को यूँ झटक दे रहे हैं की इन्होंने उद्योग आधार पंजीकरण नहीं कराएँ हैं और एम. एस. एम. ई. के लिए सरकार नें अलग से कोई गाइडलाईन जारी नहीं किये हैं. यहीं पर बड़ी कंपनियों को उबारने के लिए बैंक और सरकार दोनों साथ – साथ खड़े नजर आ रहे हैं.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बाद कोरोना महामारी ने भारत में जो आर्थिक संकट पैदा किया है उसका परिणाम तो अब त्योहारों में देखने को मिलेगा. इसमें यह तय है की सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम वाले फस गए हैं. जबकि यही लोग भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सबसे बड़ा योगदान करते आये हैं. जब भी हमारे यहां कभी आर्थिक संकट आता है तो सबसे बड़ी मार इसी मिडिल क्लास पर पड़ती है. मिडिल क्लास में आने वाली निचले स्तर की जनसँख्या जिसे हम “लोअर-मिडिल क्लास” कहते हैं, वह लोअर क्लास में शिफ्ट हो जाती है. इसे हम सीधे ऐसे कह सकते हैं की “लोअर-मिडिल क्लास गरीब बन गए”. यहीं पर सरकारी बैंकों पर जिम्मेदारी होती है कि वह अपने लाभ – हानि का आंकलन करते हुए लोगों की मदद करें.

यहीं पर सरकार भी बैंकों पर आश्रित हो जाती है और सरकारें चाह कर भी लोगों को सीधे – सीधे सहयोग नहीं कर पाती. सरकार ने लोन की किश्तें जमा करने के लिए जो छूट दी है लेकिन लोअर-मिडिल क्लास जो गरीब बन गए, उन पर यह लागू नहीं हो पा रहे हैं. एक व्यक्ति ने अपनी नौकरी के समय घर खरीदने के लिए बैंक से लोन लिया था. आधी किश्तें चुकाने के बाद कोरोना महामारी के दौरान उसकी नौकरी चली गईं. अभी तो बैंक शांत बैठे हैं लेकिन सरकार द्वारा किश्तें जमा करने के लिए छूट का समय खत्म होते ही बैंक देनदारों पर किश्तें जमा करने के लिए दबाव बनाएंगे. जिसकी नौकरी चली गईं हो यदि बैंक उसका घर भी बकाए के नाम पर जब्त कर ले तो ऐसे में लोग क्या करेंगे और कहां जाएंगे? आने वाले समय में बहुत बड़ी संख्या में बैंकों के सामने ऐसे मामले आने वाले हैं. लोग अपना कर्ज चुकाने की स्थिति में ही नहीं होंगे.

अब हमें ऐसे लोगों को आगे बढ़ाने के उपाय खोजने होंगे. इसमें बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है. सरकार को कम व्याज पर इनके लिए धन उपलब्ध करना सबसे बड़ा कार्य हो सकता है. क्रेडिट कार्ड से मिला ब्याज बैंकिग सेक्टर में आमदनी का एक बड़ा साधन है लेकिन इस पर लगने वाला भारी – भरकम ब्याज सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम वालों के लिए घातक है.

  • साभार पल्लव टाइम्स

 

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