सऊदी अरब पाकिस्तान का एक सबसे अच्छा दोस्त रहा है. यहाँ तक की भारत के साथ पाकिस्तान की दो जंगें हुई है. लेकिन दोनों बार सऊदी अरब ने खुलकर पाकिस्तान की मदद की है. कश्मीर के मुद्दे पर भी सऊदी ने पाकिस्तान का साथ दिया लेकिन अब वही कश्मीर दोनों देशों के मजबूत रिश्तों में चट्टान की तरह खड़ा हो गया है. कारण – प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ऊँची कूटनीति.

वर्ष 2018 में जब इमरान खान ने पाकिस्तान की सत्ता संभाली थी‚ उस वक्त पाकिस्तान कंगाली की कगार पर खड़ा था‚ तब भी सऊदी ने पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए पाकिस्तान को 6.2 अरब डॉलर का ऋण दिया था. इसमें से तीन अरब की रकम सीधे पाकिस्तान के खाते में आई जबकि बाकी पैसा उधार पर तेल के लिए था.

अब पाकिस्तान चाहता है कि सऊदी अरब कश्मीर के मुद्दे पर उसका साथ दे लेकिन सऊदी अरब से उसे यह बताने में तनिक भी देरी नहीं कि पाकिस्तान भले ही उसका दोस्त है लेकिन उसकी कीमत पर वह भारत को दरकिनार नहीं कर सकता है.

इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है‚ जब कश्मीर के मुद्दे पर किसी इस्लामिक देश खासकर किसी अरब देश ने पाकिस्तान की जगह भारत का साथ दिया है. हालांकि पाकिस्तान ने अपनी तरफ से एड़ी चोटी का जोर लगा लिया‚ मगर कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ न तो मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी की मीटिंग ही बुला सका और न भारत की आलोचना करवा पाया. हालांकि कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब को साथ लाने की पाकिस्तान की पहली कोशिश नहीं थी‚ इससे पहले भी पाकिस्तान कई मौकों पर अपने इस दोस्त से साथ यह मांग कर चुका था‚ लेकिन हर बार पाकिस्तान हाँथ मलता रह गया है.

असल में पाकिस्तान – तुर्की और मलयेशिया को साथ लेकिर मुस्लिम देशों का नेता बनना चाहता था लेकिन सऊदी ने उसकी मंशा पर पानी फेर दिया. जब भारत के खिलाफ सऊदी अरब को खड़ा करने की पाकिस्तान की सोंच असफल हो गई तो उसने दूसरा हथकंडा अपनाया.

5 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का एक साल पूरा होने पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक बयान दिया. कहा – पाकिस्तान मक्का और मदीना के लिए हमेशा कुर्बानी देने को तैयार रहता है लेकिन सऊदी अरब कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की नहीं सुनता है तो इमरान खान को भी चाहिए कि वो सऊदी अरब के बिना ही इस मुद्दे पर आगे बढ़ें. कुरैशी को लगा था कि इस बयान को सऊदी अरब हल्के में लेगा. लेकिन जब उसने इस पर नाराजगी जताते हुए पाकिस्तान की मदद से पैर पीछे खींच लिए तो इमरान सरकार के हाथ–पांव फूल गए.

अब सऊदी की नाराजगी सामने आई है – उसने साल 2018 में दिए गए 3 अरब डॉलर की नकद मदद को वापस मांग लिया है. पाकिस्तान ने एक अरब डॉलर चीन से उधार लेकर सऊदी अरब को तो लौटा दिया लेकिन उसे अभी उधार के दो अरब डॉलर और चुकाने बाकि हैं. इतना ही नहीं सऊदी ने पाकिस्तान को तेल की सप्लाई भी रोक दी है. सऊदी के इस फैसले से पाकिस्तान में हाहाकार मच गया है.

सऊदी को मनाने के लिए आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा रियाद गए. जहाँ बाजवा की जिस तरह की बेइज्जती हुई‚ वह काफी है. सऊदी अरब के शासक मोहम्मद बिन सलमान ने उनसे मिलने तक से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं सऊदी अरब ने रियाद में बाजवा को सम्मानित करने के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया. बाजवा दो दिनों तक रियाद में रहने के बाद खाली हाथ पाकिस्तान लौट आए.

यह भारत की कुशल विदेश नीति और प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ऊँची सोंच का ही परिणाम है. इस्लामिक देशों के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संबंध कितने घनिष्ठ हैं. इससे समझ बन जाती है की अभी तक 6 मुस्लिम देशों ने प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान दे चुके हैं. उधर पाकिस्तान के वजीरे आजम को बेइज्जती.

पाकिस्तान अब तक यही मानता था कि दो देशों में समान धर्मों का होना दोस्ती की गारंटी है‚ लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. इसके अलावा बहुत सारी चीजें ऐसी हैं‚ जो दो देशों को करीब लाने में अहम भूमिका निभाती हैं. उनमें एक व्यापारिक हित भी है. पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के हित नहीं जुड़े हैं‚ जबकि भारत से सऊदी अरब के हित बहुत हद तक जुड़े हैं.

भारत अपनी तेल जरूरतों का 90 फीसद इंपोर्ट करता है और उसमें सबसे ज्यादा सऊदी अरब से खरीदता है. दोनों देशों के बीच करीब 27 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है‚ जबकि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच महज 3 अरब डॉलर का कारोबार होता है.

इसलिए भारत के कठमुल्ले अपनी सोंच बदलें – भारत को इस्लामिक देश बनाने की मानसिकता से बाहर निकालें. भारत की नागरिकता के साथ – साथ भारतीय बनकर रहें. भारत के साथ जियें, भारत के साथ मरें. भारत की संस्कृति का सम्मान करें. इसी में भारत के मुस्लिम समुदाय का भला है. इसके स्थान पर पाकिस्तान की राग अलापने से उनका ही नुकसान है.

  • वन्दे मातरम.

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