सुषुप्त भाषाई मुद्दे में लगाया तितकी

आयुष सचिव को चिंता नहीं सम्पूर्ण भारत की

 

चेन्नै. आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने यह कह कर तमिलनाडु में एक बार फिर सुषुप्त भाषाई मुद्दे में तितकी (आग की चिंगारी) लगा दी है की “जो हिंदी नहीं बोल सकते वे बाहर निकल जाएँ, क्योंकि मैं ठीक से अंगरेजी नहीं बोल सकता”. विषय उस समय की है जब पिछले सप्ताह आयुष मंत्रालय द्वारा तीन दिवसीय योग एवं नेचुरोपैथी पर दिल्ली में सम्मलेन चल रहा था. जिसमें तमिलनाडु से 37 लोग भाग ले रहे थे. अचानक आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा के इस बयान से तमिलनाडु के प्रतिनिधियों को धक्का लगा और वे स्तब्ध रह गए.

इस विषय को तुतुकोरिन की द्रमुक सांसद के. कन्नामोझी और शिवगंगई सांसद कृति चिदंबरम ने हांथों हाँथ उठा लिया और गैर जिम्मेदार आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा को आड़े हांथों लिया. उन्हें सचिव का पद छोड़ने की मांग भी कर डाली. सांसद कृति चिदंबरम का बयान वैसा ही था जैसा कभी तमिलनाडु के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री और राज्यसभा में उपाध्यक्ष रह चुके तम्बीदुरई का बयान हिंदी के विषय में रहा करता था.

प्रश्न यही उठता है की आयुष मंत्रालय सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने किस अधिकार के तहत हिंदीतर प्रतिभागियों को सम्मलेन से बाहर जाने का आदेश दे डाला. क्या आयुष मंत्रालय केवल हिंदी जानने वालों की या केवल हिंदी बोलने वाले राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है ? आयुष मंत्रालय सचिव को इतना ज्ञान तो होना ही चाहिए की भारत में 14 राष्ट्र भाषाएँ हैं. जिसमें हिंदी भी एक है. हिंदी के साथ दूसरा एक अलंकार यह है की हिंदी राष्ट्र भाषा के साथ – साथ राजभाषा भी है. अत: केंद्र सरकार के किसी भी अधिकारी के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं जुड़ा है की वह हिंदी नहीं जानने वालों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करें. इसीलिए दोनों सांसदों ने उनके साथ जो मोर्चा खोला है उसे तमिलनाडु में बल मिल रहा है.

भारत में केवल तमिलनाडु ही ऐसा राज्य है जिसने हिंदी को थोपने का जोरदार विरोध किया था. उस विरोध का इनके पर जो तर्क है उसके भी कोई काट नहीं है. जिसकी चिंगारियां कहीं – कहीं पर आज भी सुलगी हुई है. जिसे कोटेचा जैसे गैर जिम्मेदार सचिव तितकी दे देते हैं.

आयुष मंत्रालय सचिव वैद्य राजेश कोटेचा को इतना ज्ञान तो होना ही चाहिए की तमिलनाडु में आदि आयुर्वेद का द्रविड़ संस्करण “तमिलों की सिद्ध चिकित्सा है” जिसकी विशुद्धता आज के मॉडर्न आयुर्वेद से बहुत ऊँचा है. मध्य भारत और उत्तर भारत ने आदि आयुर्वेद को मॉडर्न आयुर्वेद बना कर मूल आयुर्वेद के प्राण संकट में डाल रखा है. मूल आयुर्वेद को इतना गर्त में डुबो दिया है की आज का आयुर्वेद अलोपैथी की बैसाखी पर रेंग रहा है. इसी के स्थान पर तमिलों की सिद्ध चिकित्सा में आज भी मूल आयुर्वेद के प्राण हैं. यह सब इसीलिए हो पाया है की तमिलों ने अपनी भाषा – भूषा के लिए कभी अपनी जमीर नहीं बेची.

यहाँ पर याद दिला दूँ की जब एक केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर को धोती वस्त्र में कोस्मोपोलिटन क्लब में जाने से रोक दिया गया था तब तमिलनाडु की तात्कालिक मुख्यमंत्री स्व. ज. जयललिता अम्मा ने रातों – रात विधानसभा बुलाकर पेंटधारियों की पतलून ढीली करा दी थी. आयुष मंत्रालय सचिव वैद्य राजेश कोटेचा खैर मना लें की आज तमिलनाडु के दो दबंग नेता ज. जयललिता अम्मा और मु. करूणानिधि नहीं हैं.

आयुष मंत्रालय सचिव वैद्य राजेश कोटेचा को ज्ञात होना चाहिए की जितना पुराना इतिहास संस्कृत भाषा का है उतना ही पुराना इतिहास तमिल भाषा का भी है. जैसी वैज्ञानिकता संस्कृत भाषा के साथ जुड़ा है वैसी ही तमिल भाषा के साथ है. फिर हिंदी को लेकर सचिव महोदय की इतना गरूर क्यों ? आपमें किसी की भाषा का सम्मान करने का संस्कार नहीं है तो किसी की भाषा नहीं को लेकर कड़वी जुबान खोलने का भी अधिकार है.

  • साभार पल्लव टाइम्स

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *