चेन्नै. श्री गणेश चतुर्दशी ; बीत गए, कानो – कान खबर भी न लगी. जहाँ के लोग दबंग थे, गणेश उत्सव मना लिया. जिन्होंने हाय-ब्रीड अनाज खाया था, वे सरकारी आदेश का पालन करते रह गए. करना भी चाहिए. सोशल मिडिया पर जो प्रश्न उठाये जा रहे हैं वह यही है की क्या सरकारी आदेश और उसका पालन केवल कमजोर हिन्दुओं के लिए है ?

तेलंगना ; तमिलनाडु का पड़ोसी राज्य. श्री गणेश चतुर्दशी मनाई गई. पहले जैसा उत्सव नहीं, पर मनाई गई. सडक पर उतरे गैर सरकारी लोगों ने विरोध जताया. लोगों ने धुनाई कर दी. पुलिस ने बीच – बचाव किया. सराहनीय कदम. मामला बढ़ने नहीं दिया. तूल भी पकड़ने नहीं दिया. पुलिस को लोगों ने धन्यवाद किया.

तमिलनाडु ; पुलिसिया फरमान. कोई लिखित आदेश नहीं. पर श्री गणेश चतुर्दशी नहीं मना सकते. यहाँ के लोगों ने नहीं मनाया. सड़कें सूनी रह गई. श्री गणेश चतुर्दशी पर जो विरोधी दल आपस में गले मिलते थे. उनकी वैर धरी रह गई. यहाँ के गावों में यही तो उत्सव है जब गाँव के कई आपसी विरोधी गले मिल जाते हैं और एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं. ऐसा ही “आड़ी” असाढ़ में अम्मन (माता का त्यौहार) का है. गाँव के सभी आपसी विरोध वाले गले मिल कर आड़ी का जलसा मानते है. नाचते है, झूमते हैं, कूत (ऐतिहासिक धार्मिक नाटक) खेलते हैं. वर्षा ऋतू का स्वागत करते हैं.

इस वर्ष सभी कुछ धरा का धरा ही रह गया. न बाजे बजे. न मृदंग बजा. न ही गाँव के लड़कों ने कूत खेला. न ही अच्छी वर्षा के लिए आदि देवी को धन्यवाद दिया. जिन्होंने 1975 के आपातकाल को झेला है वे कह रहे हैं की 45 साल में ही दूसरी बार आपातकाल देखने का सौभाग्य या दुर्भाग्य मिल रहा है. क्या अद्भूत वर्ष है. एक साथ दो अद्भूत देखने को मिला. 1) 40 साल बाद अतिवर्धर जी का दर्शन हुआ. 2) 45 साल बाद आपातकाल के दर्शन हुए. हम जैसे लोग जिन्होंने 1975 में होश संभाल लिए थे, जीवन में 2 आपातकाल के दर्शन हो गए.

ऊपर लिखा है “जिन्होंने हाय-ब्रीड अनाज खाया था, वे सरकारी आदेश का पालन करते रह गए.” हाँ ; हाय-ब्रीड अनाज, मतलब नपुंसक अनाज, फिर तो नपुंसकता ही आएगी. जो दिख भी रहा है. खुल्लम – खुल्ला लूट को तमाशबीन बन कर देख रहे हैं. ये उनके फसल काटने का मौसम है. नीचे वाले चांदी काट रहे हैं, ऊपर वाले सोना बीन रहे हैं. पीस रही है आम जनता हम और आप.

आपातकालीय लॉकडाउन के फायदे भी बहुत हुए हैं, पर अब बोरियत हो रही है. कारण साफ है. पडोसी कर्नाटक ने लॉकडाउन पर से फरमान हटा लिया है. कर्नाटक के साथ है तो हमारा बेटी – रोटी का रिस्ता. इसीलिए दर्द हो रहा है. मुश्किल यही है की इस आपातकालीय लॉकडाउन में यदि आप हिन्दू हो तो सरकार का विरोध करना भी मुश्किल. बस तमाशबीन बन जाइये. देखते हैं आगे – आगे होता है क्या ?

  • वन्दे मातरम.
  • साभार, पल्लव टाइम्स

सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ निरंजन कु वर्मा

Sevaratna Gavyasiddhachary
Dr. Niranjan K Verma

Advance Ayurvedik Therepist (TN Govt.), M.D.(panchgavya), M.D.(Cell Medicine), FRSH, FWSAM, Editor – Pallav Times.

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