आज जिस प्रकार से “विश्व स्वास्थ्य संगठन” की किरकिरी हुई है, उससे उसके दोष उजागर हुए हैं। अब इसका ठीकरा भारत पर फोड़ने की तैयारी है। इसीलिए भारत के केंदीय स्वास्थ्य मंत्री श्री हर्षवर्धन जी को अध्यक्ष पद दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आचरण रहा है की विश्व के जिन – जिन देशों में अलोपथी का बाजार नरम पड़ता है या रहने की संभावना रहती है उसी देश को इसके जुए में जोत दिया जाता है।
हमें पता है की अलोपथी की नैया सभी देशों में डूब रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहाँ भी लोग अलोपथी से परेशान हैं। इनके लूट से त्रस्त है। लेकिन विकल्प के अभाव में इनका बोल – बाल है। यही कारण है की अलोपथी संगठन अपने सामने किसी दूसरे थेरेपी को मानने से इंकार कर रहे हैं। उन्हें डर है की उनकी नैया जल्दी न डूब जाए। यही कारण है की हमारी सरकारों को बांध कर रक्खा है। किसी दूसरे थेरेपी की अच्छाइयों को दबाते आए हैं।
आज कोरोना संकट से संसार दुखी है। इस संकट से वे बाहर निकलने के लिए वैक्सीन बनाने के प्रयास में हैं। लेकिन अभी तक कोई वैक्सीन बन नहीं पाया है। जबकि भारत में “पंचगव्य” जो की आयुर्वेद का अभिन्न भाग है इसके जानकार (गव्यसिद्ध) इस विषय पर शोध कर कोरोना से लड़ने वाली औषधियों के निर्माण का दावा कर रहे हैं। कई कोरोना के मरीज भी ठीक हुए हैं। सरकार के पास इसकी जानकारी भी भेजी गई है लेकिन सरकारें इस दिशा में सोचने के लिए भी तैयार नहीं है। आखिर क्यों?
कारण वही है, इस दिशा में किसी दूसरे थेरेपी को अवसर नहीं देकर अलोपथी अपने अस्तित्व को बचाने और आपात काल में एक मात्र कारगर थेरेपी होने को स्थापित कर रहा है। भारत में कई आयुर्वेद के वैद्य, होमिओपथी के डॉक्टर, पंचगव्य के गव्यसिद्धर कोरोना से लड़ने वाले औषधियों के उपयोग से कोरोना के मरीजों को ठीक कर रहे हैं। कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान से सफलता के समाचार मिल रहे हैं। लोग अपने विवेक के आधार पर पंचगव्य की औषधियों का सेवन कर रहे हैं और लाभ ले रहे हैं। होमिओपथी के विशेषज्ञ भी इस कार्य को सफलता पूर्वक कार्य कर रहे हैं। इसके भी समाचार मिल रहे हैं। फिर भी सरकार अलोपथी के मकड़जाल से बाहर नहीं निकाल पा रही है।
ऐसे में भारत को “विश्व स्वास्थ्य संगठन” का मुखिया बना देना, अलोपथी द्वारा अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास ही है। ऐसे में प्रश्न उठता है की क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए मुखिया श्री हर्षवर्धन जी भारत को इस कुचक्र से बचा पाएंगे? भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन का रब्बर स्टंप बनने से बचा पाएंगे? क्या अलोपथी के स्थान पर आयुर्वेद को स्थापित करना तो दूर प्रवेश भी करा पाएंगे? संभव तो नहीं दिखाता है, लेकिन हमें देखना होगा की श्री हर्षवर्धन जी इस दिशा में कितना कुछ कर दिखाते हैं?
“विश्व स्वास्थ्य संगठन” को अलोपथी का भोंपू कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसा भी नहीं हैं की मेरे दिल में अलोपथी को लेकर कोई दुराग्रह है, परंतु जब भारत में ही भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की कब्र खोदी जाती है तो विवस हो कर लिखना पड़ता है। अलोपथी का जन्म मात्र 250 वर्ष पहले हिप्पोक्रट्स द्वारा लूटेरा देश ब्रिटेन में हुआ था। जबकि आयुर्वेद की स्थापना सत्युग में ही ऋषियों के द्वारा की गई थी। आज तक आयुर्वेद से लगभग 300 थेरेपियाँ निकली है। फिर भी आज आयुर्वेद ज्ञान के समुद्र की भांति जीवंत है।
इसलिए माननीय श्री हर्षवर्धन जी ! “विश्व स्वास्थ्य संगठन” में उसके अध्यक्ष पद पर रहते हुए आयुर्वेद और इससे निकली चिकित्सा पद्धतियों के लिए कुछ अच्छा न भी करो, तो भी कोई दुख नहीं होगा। लेकिन यदि बुरा किया तो भारत की जनता आपको कभी माफ नहीं करेगी।
- वंदे मातरम